“रतनपुरिहा भादो गम्मत” रतनपुर की एक पारंपरिक सांस्कृतिक धरोहर
(विजय दानिकर) : बिलासपुर – छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रहे रतनपुर का इतिहास काफी समृद्ध साली है जहां कि सांस्कृतिक गतिविधियों पर यदि गौर किया जाए तो प्रारंभिक काल मे राजा महाराजा के समय से ही यहां की सांस्कृतिक धरोहर अत्यंत ही गौरवशाली रहा है तो इसी कड़ी में लगभग 175 वर्ष पुरानी रतनपुरिहा भादो गम्मत की परंपरा की जीवंत रूप आज भी देखने को मिलती है।
हिंदी माह के भादो महीना में गणेश उत्सव के दौरान अपनी सांस्कृतिक छटा बिखेरने वाली गम्मत की परंपरा से कभी रतनपुर की पहचान रही है किंतु समय के बदलते करवट के साथ ही अब धीरे-धीरे यह परंपरा विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है बताया जाता है कि लगभग 175 वर्ष पुरानी इस परंपरा को संजोए रखने के खातिर आज भी कुछ बुजुर्गों के द्वारा इसे जीवित रखा हुआ है जिसमें रतनपुर के करैहापारा स्थित बाबूहाट में भादो गम्मत की इंद्रधनुषी छटा देखने को मिलती है जहां भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा विराजमान रहती हैं और इस स्थान को प छोटे-छोटे झिलमिलाती लाइट व तोरण से सजाया जाता है जहां इस पारंपरिक गम्मत के ज्ञाता बुजुर्गों के द्वारा महान साहित्यकार बाबू रेवाराम द्वारा रचित भगवान श्री गणेश की जीवन लीला पर आधारित गुटका भजन के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है जिसे नर्तकों के द्वारा बड़ा ही आकर्षक और बखूबी अंदाज में इसे प्रस्तुत किया जाता है जिसमें छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वाद्य यंत्र तबला,मजीरा,तानपुरा,हारमोनियम आदि के धुनों के साथ रतनपुरिहा शैली में गाया जाने वाला भजन अत्यंत ही मनमोहक होता है और इस गम्मत में सबसे मजे की बात तो यह है कि लड़कों के द्वारा लड़की की भूमिका में नर्तकी बन कर इनके अभिनय के अभिव्यक्ति इतना आकर्षक रहता है कि दर्शक के मन को मोह डालता है और पूरी रात पल भर में यूं ही गुजर जाती है।
किन्तु अफसोस की बात यह है कि आज के इस टेलीविजन और मोबाइल के युग में इस प्राचीन परंपरा गम्मत के अस्तित्व अब धीरे-धीरे सिमटकर डूबता जा रहा है इस परंपरा को जीवित रखने वाले रतनपुर के कुछ ही बुजुर्ग जिसे इनके द्वारा सहेज कर रखा गया है अब आने वाले समय में देखना यह है कि भविष्य युवा पीढ़ी के द्वारा इस परंपरा को आगे बढ़ाने में इनका क्या योगदान रहता है।