बिलासपुर

देशी फ्रिज के नाम से पहचाने जाते है चंदिया के मटके….

(आशीष मौर्य के साथ जयेन्द्र गोले) : बिलासपुर – कोरोनाकाल में लोगों ने फ्रिज का ठंडा पानी पीना बंद किया तो मटकों और सुराहियों की मांग बढ़ गई। उस दौरान चंदिया के मशहूर मटकों-सुराहियों को हाथों-हाथ लिया गया। चंदिया के मटकों की तासीर फ्रिज जैसा ठंडा पानी रखने की है। इसलिए जिनके घरों में फ्रिज भी हैं, वे चंदिया की सुराही व मटकों का पानी ,पीना स्वास्थ की दृष्टि से अच्छा मानते है।

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कटनी से बिलासपुर मार्ग की रेल यात्रा के दौरान एक छोटा स्टेशन पड़ता हैं जिसका नाम है चंदिया,चंदिया की सुराही व मटकों को ग्रीष्म कालीन फ्रीज के नाम से जाना जाता है।लोग बताते हैं कि जब दमोह-कटनी-बिलासपुर रेल लाइन के साथ ही भोपाल-पैंसेजर ट्रेन का भी विस्तार हुआ,तो इस रेल खंड के एक छोटे से स्टेशन चंदिया के कुंभकारों द्वारा बनाए गए मटके व सुराही बुंदेलखंड, , छत्तीसगढ़, महाराष्ट व यूपी तक हर गर्मी में अपनी धाक जमाने पहुंचने लगे,लोग मटका खरीदते समय उस अंगुलियों के पिछले हिस्से या हथेली से बजाकर देखते हैं, जिससे एक खनखनाहट निकलती है। इस खनखनाहट से पता चलता है कि मटका मजबूत है या कच्चा।इन सुराहियों एवं मटको की खनक जबलपुर, कटनी, शहडोल, अनूपपुर, रायपुर, जैसे बडे शहरो में भी खनकती है।

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मटका खरीदने जो भी लोग आते यहैं उन्हें मजबूत और अच्छा मटका तो चाहिए होता है ,लेकिन वो पूरा दाम नहीं देना चाहते। रेट कम कराने के लिए काफी समय तक लोग माथापच्ची करते हैं। कोई से सोचने तो तैयार नहीं होता कि मटका गढ़ने के लिए माटी से कितना जूझना पड़ता है।

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चंदिया के मटका बनाने वालों ने एक नया प्रयोग किया है। प्याऊ व स्टैंड पर रखे जाने वाले मटकों में नल लगाए गए हैं। इन नलों के उपयोग से मटके में किसी बर्तन से पानी निकालने की जरुरत नहीं पड़ती है और नल से पानी लेने में शुद्धता बनी रहती है। इस बार सबसे ज्यादा पूछपरख नल लगे मटकों की हो रही है।

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