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CEC और EC की नियुक्ति प्रक्रिया से CJI को क्यों किया बाहर? SC ने..

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(शशि कोंन्हेर) : मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा करने के प्रावधान वाले कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। इस समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश शामिल नहीं हैं। हालांकि, कोर्ट ने कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। इस मामले पर अब अप्रैल में सुनवाई होगी।

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कांग्रेस नेता जया ठाकुर और अन्य लोगों के द्वारा दायर याचिकाओं में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम 2023 पर सवाल उठाया गया है। उन्होंने इसे संविधान का उल्लंघन बताया है। साथ ही यह भी दावा किया गया है कि इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव पर सवाल खड़ा होगा।

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वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि यह कानून संविधान पीठ के उस फैसले का भी उल्लंघन करता है जिसमें कहा गया था कि सीईसी और ईसी का चयन प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा किया जाएगा और इसमें सीजेआई और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष भी शामिल होंगे।

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आपको बता दें कि इस नए कानून में सीजेआई की जगह एक कैबिनेट मंत्री को शामिल कर दिया गया है। प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें नॉमिनेट किया जाएगा।

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा, ”हम इस तरह के कानून पर रोक नहीं लगा सकते। आप भारत सरकार को याचिका की एक प्रति प्रदान करें। हम इसे देखेंगे।”

अनूप बरनवाल बनाम भारत सरकार मामले में निर्णय में कहा गया कि मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) और चुनाव आयुक्तों (ईसी) के चयन में पारदर्शिता लाने के लिए राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले पैनल की सिफारिश पर सीईसी/ईसी की नियुक्ति करनी चाहिए। दो अन्य सदस्य लोकसभा में विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश भी इसमें शामिल होंगे। अधिनियम में सीजेआई के स्थान पर प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री को नियुक्त किया गया है।

नए कानून को 21 दिसंबर को संसद द्वारा मंजूरी दे दी गई और 28 दिसंबर को इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई। जया ठाकुर द्वारा दायर याचिकाओं में से एक में कहा गया है, “2023 अधिनियम की धारा 7 और 8 स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”

लोकसभा में कानून पेश करते समय केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि यह कानून सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप लाया गया है। 2 मार्च, 2023 के फैसले में ही कहा गया था कि यह फैसला तब तक प्रभावी रहेगा जब तक संसद द्वारा कोई कानून नहीं लाया जाता है।

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