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CJI चंद्रचूड़ का बड़ा बयान, जजों के इस रवैये पर जताई चिंता, बोले….

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भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ अपने अहम फैसलों के लिए जाने जाते हैं। वे अब तक कई बड़े मामलों की सुनवाई कर चुके हैं। एक बार फिर से उन्होंने सोमवार को बड़ा बयान दिया है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने जजों द्वारा लंबे समय तक अदालती मामलों को रिजर्व रखे जाने पर चिंता जताई है। उन्होंने दो टूक कहा कि ईमानदारी से कहूं तो इतने समय के बाद मौखिक दलीलें मायने नहीं रखती हैं।

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कोर्ट की सुनवाई और फैसलों पर रिपोर्ट करने वाली ‘बार एंड बेंच’ के अनुसार, सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ”चिंता का विषय यह है कि जज बिना फैसलों के 10 महीने से अधिक समय तक मामलों को रिजर्व रखते हैं।

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मैंने सभी हाई कोर्ट को लिखा है। लेटर के बाद मैंने देखा है कि कई जज केवल मामलों को रिजर्व कर रहे हैं और सूचीबद्ध कर रहे हैं। इसके अलावा, आंशिक सुनवाई भी कर रहे हैं। ईमानदारी से कहूं तो इतने लंबे समय के बाद मौखिक दलीलें मायने नहीं रखतीं और जज भूल जाते हैं।”

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सीजेआई चंद्रचूड़ ने आदेश सुनाते हुए आगे कहा कि हमें उम्मीद है कि देश के ज्यादातर हाई कोर्ट्स में यह चलन नहीं है। हम मानते हैं कि किसी भी मामले की पर्याप्त अवधि तक सुनवाई होने के बाद उसे इस स्तर पर जारी करने से देरी, दुर्दशा और वादकारियों की कानूनी फीस बढ़ जाती है।

सीजेआई के नेतृत्व वाली बेंच ने हाई कोर्ट से मामले का शीघ्र निपटारा करने और पहले संक्षिप्त सुनवाई के लिए कार्यवाही को फिर से सूचीबद्ध करने के लिए कहा है। हालांकि, बेंच ने यह भी कहा कि हम हाई कोर्ट के बोझ से अवगत हैं।

‘संविधान के प्रति रहें वफादार’
बता दें कि पिछले दिनों नागपुर हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के शताब्दी वर्ष समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने वकीलों के लिए अहम संदेश दिया था। सीजेआई ने वकीलों से किसी राजनैतिक दल के लिए नहीं, बल्कि संविधान के प्रति वफादार रहने के लिए कहा था। सीजेआई ने कहा कि वकीलों को कोर्ट और भारतीय संविधान को अपने राजनीतिक झुकाव और विश्वास से ऊपर रखना चाहिए।

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ”हमारे जैसे जीवंत और तर्कशील लोकतंत्र में, अधिकांश व्यक्तियों की एक राजनीतिक विचारधारा और झुकाव होता है। अरस्तू के शब्दों में, मनुष्य राजनीतिक प्राणी हैं। वकील कोई अपवाद नहीं हैं।

हालांकि, बार के सदस्यों के लिए, किसी की सर्वोच्च निष्ठा पक्षपातपूर्ण हित के साथ नहीं बल्कि अदालत और संविधान के साथ होनी चाहिए। कई मायनों में, एक स्वतंत्र बार कानून के शासन और संवैधानिक शासन की रक्षा के लिए नैतिक कवच है।”

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