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काम पर क्या फर्क पड़ता है? नेता रहीं वकील को HC जज बनाने के विवाद पर बोले चीफ जस्टिस

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इसी साल सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एडवोकेट लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी को मद्रास हाईकोर्ट का जज बनाए जाने की सिफारिश की थी। उनके जज बनाए जाने को लेकर खूब विवाद हुआ। मद्रास हाईकोर्ट के 21 वकीलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा था, जिसमें हाई कोर्ट जज के रूप में लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी की नियुक्ति की सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश वाली फाइल वापस भेजने का आग्रह किया गया था। अब इस पूरे मामले में चीफ जस्टिस की टिप्पणी सामने आई है।

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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति की सिफारिश करने से पहले न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी से संबंधित सभी सामग्रियों की सावधानीपूर्वक जांच की थी। सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि किसी राजनीतिक मुद्दे के लिए पेश होने या समर्थन करने वाले वकील जज बनने से अक्षम नहीं हो जाते हैं।

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चीफ जस्टिस ने कहा, “वकील अपने करियर में विभिन्न वर्गों से आने वाले मुवक्किलों (क्लाइंट्स) के लिए पेश होते हैं। वकील अपने मुवक्किल नहीं चुनते। यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि एक वकील के रूप में, जो कोई भी कानूनी सहायता की तलाश में आपके पास आता है, उसके लिए पेश होना आपका कर्तव्य है। यह ठीक वैसे ही जैसे एक डॉक्टर को अपने क्लिनिक में आने वाले किसी भी व्यक्ति का इलाज करना होता है। आप अपने पास आने वाले लोगों के अपराधबोध या अपराधबोध की कमी का अनुमान नहीं लगाते हैं।”

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इस संबंध में उन्होंने जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर के मामले का भी जिक्र किया। सीजेआई ने कहा, “हमारे सबसे महान न्यायाधीशों में से एक, न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर की पृष्ठभूमि राजनीतिक थी लेकिन उन्होंने कुछ बेहतरीन फैसले दिए।” जब वह एक वकील थीं तब न्यायमूर्ति गौरी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से कथित संबद्धता के कारण उनकी पदोन्नति विवादों में घिर गई थी।

न्यायमूर्ति विक्टोरिया गौरी का मामला भी कुछ इसी तरह का है। कथित तौर पर न्यायमूर्ति गौरी से संबंधित एक असत्यापित ट्विटर अकाउंट ने अपने बायो में दावा किया था कि वह भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय महासचिव थीं। मामला इतना ही नहीं था। इस्लाम और ईसाई धर्म के खिलाफ उनकी टिप्पणियों ने भी तूफान खड़ा कर दिया। ये सब यूट्यूब पर उपलब्ध हैं।

सीजेआई चंद्रचूड़ 21 अक्टूबर को सेंटर फॉर लीगल प्रोफेशन, हार्वर्ड लॉ स्कूल में बोल रहे थे। कार्यक्रम में उनसे पूछा गया, “कम से कम प्रशासनिक स्तर पर कॉलेजियम उस सिफारिश को वापस क्यों नहीं ले सका।” जवाब में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “आपके प्रश्न में एक अनुमान है, जो यह है कि हमारे ध्यान में आने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। मुझे नहीं लगता कि यह बहुत सही मूल्यांकन होगा।”

आगे उन्होंने कहा, “हमने इसे बहुत, बहुत ध्यान से देखा। उस भाषण को भी देखा है। उन न्यायाधीश पर एक विशेष समय पर वह भाषण दिए जाने का आरोप है। उसको फिर से बहुत, बहुत, बहुत ध्यान से देखा गया है। कॉलेजियम में हम जिन प्रक्रियाओं का पालन करते हैं, इनमें से एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट मांगना शामिल है।” सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि कॉलेजियम द्वारा विवरणों की जांच करने के बाद भी, अगर उसे अभी भी संदेह है, तो इसे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास ले जाया जाता है, जहां नियुक्ति की जा रही है।

उन्होंने कहा, “हम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पास वापस जाते हैं। हम उनसे कहते हैं, कि देखिए यह बात हमारे ध्यान में लाई गई है। क्या आप हमें इससे जुड़ी एक संक्षिप्त रिपोर्ट देंगे कि यह सच है या गलत? हम फीडबैक मांगते हैं और फिर हम वह फीडबैक सरकार के साथ साझा करते हैं।” उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में राज्य और केंद्र सरकार और इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) द्वारा बैकग्राउंड की जांच भी शामिल है।

सीजेआई ने कहा, “न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक काफी जटिल प्रक्रिया है जिसमें संघीय प्रणाली की विभिन्न परतें, राज्य, संघ और इंटेलिजेंट ब्यूरो जैसी जांच एजेंसियां शामिल होती हैं जो किसी व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच करती हैं।” सीजेआई ने कहा कि उनका अपना व्यक्तिगत अनुभव यह है कि विभिन्न राजनीतिक विचारों वाले व्यक्तियों के लिए पेश होने वाले वकील अद्भुत न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने कहा, “इसलिए, मैं यह नहीं मानता कि हमें किसी व्यक्ति की केवल उन विचारों के आधार पर आलोचना करनी चाहिए जो उसने वकील के रूप में कहे होंगे। क्योंकि मेरा मानना है कि हमारे न्याय करने के पेशे में ऐसा कुछ है जो आपको निष्पक्ष बनाता है।”

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