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ये तो बड़ा फ्रॉड है, बेरोजगारों के साथ छल हैक्यों भड़के CJI चंद्रचूड़..

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सुप्रीम कोर्ट में आज पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती में हुए कथित घोटाले और कलकत्ता हाई कोर्ट द्वारा नियुक्ति रद्द करने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई हो रही थी।

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देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी है लेकिन सीबीआई जांच कराने की सहमति दे दी है।

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सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस कई मौकों पर राज्य सरकार के वकील पर भड़कते नजर आए। राज्य की तरफ से वरिष्ठ वकील नीरज किशन कौल और एक अन्य वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता पैरवी कर रहे थे।

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जब सीजेआई ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि भर्ती बोर्ड द्वारा ली गई परीक्षा की कॉपियां कहां है तो गुप्ता ने कहा कि वो तो नहीं है क्योंकि परीक्षा लिए कई साल हो गए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह तो आपकी जवाबदेही है। भर्ती बोर्ड को अपने सर्वर पर उसकी डिजिटाइज्ट कॉपी सुरक्षित रखनी चाहिए थी।

इस पर मिस्टर गुप्ता ने कहा, “यह हमारे सर्वर पर नहीं बल्कि किसी और के सर्वर पर होता है।” इस पर चीफ जस्टिस ने भारी नाराजगी जताई और कहा कि आपका डेटा आपके सर्वर पर ना होकर किसी और के सर्वर पर है। यह तो भारी सुरक्षा लापरवाही और चूक है।

जस्टिस चंद्रचूड़ इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने कहा, यह तो सिस्टम के साथ फ्रॉड है। उन्होंने कहा, “सरकारी नौकरियां बहुत कम हैं… अगर जनता का विश्वास उठ गया तो कुछ भी नहीं बचेगा। यह व्यवस्थागत धोखाधड़ी है।

सरकारी नौकरियां आज बहुत कम हैं और उन्हें सामाजिक विकास के रूप में देखा जाता है। अगर नियुक्तियों पर भी सवाल उठने लगें तो व्यवस्था में क्या बचेगा? लोगों का विश्वास खत्म हो जाएगा, आप इसे कैसे स्वीकार कर सकते हैं?”

सीजेआई ने कहा कि आपके पास यह दिखाने के लिए कुछ नहीं है कि यह डेटा कहां रखा गया है और वह सुरक्षित है भी या नहीं? जब CJI भड़कने लगे तो राज्य सरकार के वकील मिस्टर गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि भर्ती बोर्ड के पिछले चेयरमैन पर उसी डेटा की वजह से मुकदमा चलाया जा रहा है।

खंडपीठ में चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आज के फैसले में पश्चिम बंगाल के कथित भर्ती घोटाले को “व्यवस्थागत धोखाधड़ी” करार देते हुए कहा कि अधिकारियों की जिम्मेदारी थी कि वे 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति से संबंधित डिजिटल रिकॉर्ड संभाल कर रखते।

पीठ ने राज्य सरकार के वकीलों से कहा, “या तो आपके पास डेटा है या नहीं है। डिजिटल रूप में दस्तावेज संभाल कर रखना आपकी जिम्मेदारी थी। अब यह जाहिर हो चुका है कि डेटा नहीं है। आपको यह बात पता ही नहीं है कि आपके सेवा प्रदाता ने किसी अन्य एजेंसी को नियुक्त किया है। आपको उसके ऊपर निगरानी रखनी चाहिए थी।”

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