अम्बिकापुर

नगर में मनाई गई पारम्परिक कठोरी पूजा


(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर+ (सरगुजा) – सदियों पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए नगर लखनपुर के झिनपुरीपारा मुहल्ले में स्थित गौरा महादेव कलेसरी देवी के पूजा स्थल पर धन धान्य समृद्धि खुशहाली वृद्धि को लेकर किसान वर्ग के लोगों ने 20 अप्रैल दिन गुरुवार को कठोरी पूजा मनाया।

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कठोरी अर्थात कठोर भूमि की पूजा जहां हल न चलाया जाता हो । नगर तथा आसपास के ग्रामीण इलाकों में
प्रत्येक साल आस्था से जुड़ी कठोरी पूजा मनाई जाती है। प्रथा अनुसार एक निश्चित तिथि को एक रोज पहले ग्राम कोटवार द्वारा कठोरी पूजा मनाने मुनादी करा दी जाती है। बैशाख महिने के किसी एक निश्चित तिथि को गौरा महादेव पूजा स्थल पर
किसान वर्ग के बड़े बुजुर्ग युवा एकत्रित होकर कठोरी पूजा मनाते हैं। नियमानुसार किसान अपने अपने घरों से किसी लकड़ी के बने पैयली, टिन के डिब्बे (मान)में धान भरकर उसे गोबर से ढंक उपर से दुबी गाड़ अबीर सिन्दूर धूप दीप नारियल से आच्छादित थाली को देव स्थान में लाकर रख देते हैं ग्राम बैगा लोकरीति अनुसार पूजा अर्चना करता है ‌।
सभी किसानों के ढकें पैयली में से थोडे थोडे धान निकाल कर एक मोरली (बांस के बने बर्तन) में इकठ्ठा करता है पहले आवाहित देवी देवताओं की पूजा अर्चना की जाती है फिर किसानों के द्वारा लाये धान की पूजा मां अन्नपूर्णा देवी के रूप में होती है।
पैयली में शेष बचे धान को ग्राम बैगा किसानों को लौटा देता है। इसी धान को किसान अक्षय तृतीया गंगा दशहरा शुभ दिनों में अपने खेत में बोकर खेती कार्य की शुभारम्भ करते है।
इसे मुठ लेना अर्थात कृषि कार्य की शुरुआत करना कहते हैं।
दरअसल कठोरी पूजा में
गौरा महादेव के अलावा इन्द्र वरूण,पवन अग्नि ,
मां धरती अन्नपूर्णा देवी
रासबढावन देवता डीहडीहारीन की पूजा अर्चना करने की जाती है । ग्राम बैगा रितिनुसार अपने ज़ुबान में पूजा करता है। लखनपुर में चली आ रही रिति अनुसार
राज महल के पिटारी में रखे दुर्लभ रासबढावन देव (गोलाकार पत्थर) घंटी को गौरा महादेव पूजा स्थल पर ग्राम बैगा द्वारा लाकर फसल की अच्छी पैदावार की आकांक्षा से देवी देवताओं की विधिवत पूजा अर्चना कर जाग्रत किया जाता हैं।
बाद इसके किसानों के धान की पूजा होती है।कृषक वर्ग के युवक प्रथानुसार गौरा महादेव का परिक्रमा करते हुए हल के लोहे से जमीन की जोताई करते है। सभी के पैयली (डिब्बे) में से निकाले गये धान की बोआई होती है। इन्द्र देव बनकर कोई किसान नीम के हरी पत्तियों वाली डंगाल से रास ढोढी के पानी का छिड़काव कठोर भूमि पर करता है‌। किसी एक युवाओं के गले में बंधे घंटियां खुशहाली समृद्धि का राग सुनाते हैं । एक दूसरे युवक के गले में चावल की रोटी बांधी जाती है। नागर जोतने पश्चात गले में बंधे चावल रोटी के साथ युवक जल सरोवर की ओर भागता है शेष युवक भी उस युवक के पीछे भागते हैं और गले में बंधे चावल रोटी को आपस में बांट कर खाते है यह चलन भी कठोरी पूजा का हिस्सा है । इस तरह से एक मनोरंजक खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। कठोरी पूजा के दौरान
पृथ्वी पर विचरण करने वाले उपद्रवी जहरीले सांप कीट पतंगों के प्रकोप शांति के लिए भी विशेष अनुष्ठान की जाती है । ताकि इनके द्वारा जनजीवन को किसी प्रकार की हानि न पहुंचाई जाये। मतलब महादेव के सुपुर्द किया जाता है।
उपस्थित सभी किसानों को
प्रसाद वितरण किया जाता है ।
रियासत काल में
कठोरी पूजा के बड़े सख्त नियम हुआ करते थे। कठोरी पूजा मुनादी के पश्चात रास ढोढी से अथवा दूसरे जल पोखर से पानी भरने पर मनाही रहती थीं। जब तक कठोरी पूजा न हो जाये।
इसके धार्मिक पहलू भी थे जल की महत्ता को देखते हुए भगवान वरूण की मर्यादा बनी रहे। धरती माता के सम्मान में भूमि खुदाई पर प्रतिबंध लगा रहता था। अग्नि देव के प्रतिष्ठा में दावानल (डाही) जलाने पर पहरा लगा रहता था। यदि किसी व्यक्ति द्वारा बनाए नियम की उलंघन या लांघने की प्रयास किये जाने पर उस दोषी व्यक्ति को अर्थ दंड से दंडित किया जाता था। और भी एतिहासिक पहलू हैं।
लखनपुर जागीरदारी में ऐसी परंपरा शामिल रही थी। कालांतर में पहले के सारे नियम मिटने लगे हैं। लोकोक्तियों से पता चलता है कि पहले पुराने जमाने में
पहले पहल ग्राम पंचायत अधला के सकरिया देव में प्रथम कठोरी पूजा हुआ करता था। बाद इसके दूसरे गांवों में कठोरी पूजा मनाई जाती थी। उस काल में सख्त कायेदे बनाये गये थे।
लेकिन बाद में इस प्रथा का अंत हो गया। समय बदलने के साथ गांवों में अलग अलग तिथियों में कठोरी पूजा मनाया जाने लगा है।

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बहरहाल लखनपुर में कुछ पुराने रिवायत अब भी चलन में है जैसे कठोरी पूजा हुये बगैर रास ढोढी से पानी नहीं भरा जाता, देर शाम तक ग्राम बैगा उस रास ढोढी के पानी को घर घर जाकर बांटता है । रास पानी को किसान वर्ग के लोग अपने घरों में छिड़कते हैं। रास पानी के बदलें कृषक वर्ग के लोग बैगा को चावल पैसा इत्यादि दक्षिणा स्वरूप देते हैं। पुराने जमाने में गांव लखनपुर में कठोरी पूजा के मौके पर गौरा महादेव को प्रसन्न करने महिला पुरुष बच्चे बुजुर्ग हिल मिल कर ढोल नगाड़ों के थाप पर थिरकते हुए बायर नृत्य भी करते थे जो बाद में किसी वज़ह से बंद हो गया। क्यों बंद हुआ अपने आप में एक रहस्य है । लेकिन दूरस्थ आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में बायर नृत्य किये जाने का चलन आज़ भी जिंदा है। धार्मिक आस्था से जुड़े कठोरी पूजा जैसे आयोजनों में हमारे प्राचीन भारतीय संस्कृति बसती हैं । बहरहाल नगर मे कठोरी पूजा उत्साह के साथ मनाया गया।

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