रोका-छेका योजना-मवेशियों को रोकने के लिए…या सड़क पर डेरा जमाए मवेशियों द्वारा मोटरगाड़ियों को रोकने के लिए…?
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – इस समय बिलासपुर वालों के लिए कोरबा जाने के जो तीन मुख्य रास्ते हैं, उनमें एक बिलासपुर से अकलतरा-चांपा होते हुए कोरबा तक जाता है। दूसरा बिलासपुर से रतनपुर होते हुए कटघोरा और कोरबा तक जाता है। जबकि तीसरा रास्ता सीपत बलौदा से होते हुए कोरबा तक जाता है। इनमें से बिलासपुर-रतनपुर होते हुए कोरबा तक जाने का मार्ग मोटर गाड़ियों को खासा प्रिय था। बाहर से आकर अथवा बिलासपुर से कोरबा जाने वाली अधिकांश गाड़ियां इसी मार्ग से आया-जाया करती थीं।। लेकिन बीते तीन-चार सालों से निर्माण के नाम पर खोदे गए गड्ढों के कारण यह बदनसीब रास्ता भी अब कोरबा जाने के लिए महफूज नहीं माना रहा।कोरबा जाने के लिए, बिलासपुर के अधिकांश लोग बीते एक डेढ़ साल से,सीपत बलौदा होते हुए कोरबा जाने वाले रास्ते का ही उपयोग कर रहे हैं। सीपत बलौदा होते हुए कोरबा जाने वाले इस रास्ते पर सड़क तो अमूमन अच्छी है, लेकिन इस रास्ते पर बिलासपुर से कोरबा तक जगह-जगह बड़ी तादाद में लगने वाले मवेशियों के डेरे ने इस रास्ते को भी जानलेवा तथा जोखिम पूर्ण कर दिया है। यहां सड़क पर विचरण करते या बैठे रहने वाले मवेशियों की भीड़ से बचते हुए गाड़ी चलाना एक तरह की जादूगरी ही हो गया है। यह समझ में नहीं आता सरकार ने अपनी रोका-छेका योजना इन मवेशियों को सड़कों से हटा कर गौठान में सुरक्षित रखने के लिए बनाई गई है अथवा इन मवेशियों को सड़क पर यहां वहां डेरा लगाने की छूट देकर उनके जरिए मोटर गाड़ियों को रोकने-छेकने के लिए बनाई है। सीपत बलौदा होते हुए कोरबा जाने वाली इस सड़क से जाने पर कोरबा बिलासपुर से महज 90 किलोमीटर पड़ता है। साधारण या कितने भी मौजूं ढंग से गाड़ी चलाने पर भी अधिक से अधिक 2 घंटे में कोरबा पहुंचा जा सकता है। लेकिन इस मार्ग पर जगह-जगह बैठे मवेशियों की कृपा से और उनसे जान बचाते हुए इस पूरे रास्ते को तय करने में 3 घंटे से भी अधिक समय लग जा रहा है। मवेशियों के अलावा भी इस सड़क से बड़ी-बड़ी मालवाहक गाड़ियों की आवाजाही, मोटर कार चालकों के लिए एक और बड़ा खतरा बन चुकी है। छोटी मोटरकार वाले बड़ी-बड़ी हाईवा गाड़ियों से किसी तरह बच भी जाएं तो रास्ते में जगह-जगह डेरा जमाए बैठे सैकडों मवेशियो का खतरा मुंहबांए खड़ा रहता है।। कुल मिलाकर अच्छी सड़क होने के बावजूद सीपत बलौदा होते हुए कोरबा जाने वाला रास्ता भी मोटर कार जैसी छोटी गाड़ी वालों के लिए दो पाटन के बीच से गुजरने जैसा है। मतलब यह कि इस रास्ते से आना-जाना करने पर अगर आप किसी तरह मवेशियों से बचकर निकलने में कामयाब भी हो जाते हैं तो सामने से जानलेवा और अंधाधुंध गति से यमराज की तरह फर्राटा भरने वाले वाहनों से बचना मुश्किल हो जाता है। इस बदतर हालात के कारण यह सड़क रोका-छेका अभियान किसको रोक रहा है..? और किसको छेंक रहा है..? इसका सर्वेक्षण करने का, सबसे अच्छा उदाहरण बढ़ गया है। रहा सवाल इन तमाम मुसीबतों के बावजूद इस सड़क से कोरबा आना-जाना करने वालों का… तो वे जीयें या मवेशियों तथा जानलेवा वाहनों की चपेट में आकर रास्ते में मरें… अपनी बला से..! सड़क निर्माण विभाग और प्रशासन के बेशर्म अफसरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।।