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राजस्थान में गहलोत के खिलाफ सचिन पायलट की जंग में कांग्रेस से अधिक इससे उलझे हैं भाजपा के तार… जानिए क्यों..?

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(शशि कोन्हेर) : पूरे देश मे जिन लोगों को राजस्थान की राजनीति की गहरी जानकारी नहीं है उन्हें यह बात समझ में शायद नहीं आएगी कि सचिन पायलट के अनशन से भाजपा की हालत “न उगलते बने और ना निगलते” जैसी क्यों हो गई है..? वहां के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो अपनी कांग्रेस पार्टी की भीतरी लड़ाई लड़ रहे हैं। कमोबेश सचिन पायलट की स्थिति भी यही है। वह भी कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन इन दोनों नेताओं की लड़ाई में तकलीफ भाजपा को हो रही है। दरअसल सचिन पायलट, प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच के लिए अनशन पर बैठे हुए हैं।

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वे इस अनशन के जरिए एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं। एक तो वसुंधरा राजे के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच की मांग कर राजस्थान की जनता के बीच हीरो बनकर उभरने की कोशिश कर रहे हैं। वही इस मांग के जरिए वे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को दबाने और नीचा दिखाने की कोशिश भी कर रहे हैं। और कोई समय होता तो कांग्रेस की इस भीतरी लड़ाई से भाजपा काफी खुश होती। लेकिन राजस्थान में भाजपा का पेंच फंसा हुआ है। वह ना तो सचिन पायलट के अनशन और संघर्ष का समर्थन कर पा रही है। और ना ही उसका विरोध कर पा रही हैं।

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दरअसल सचिन पायलट भाजपा नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच की मांग कर रहे हैं। इसलिए भाजपा के मुंह में ताले लग गए हैं। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के अधिकांश नेता अंदर ही अंदर सचिन पायलट को इसलिए समर्थन कर रहे हैं कि उनके इस वार से वसुंधरा राजे और उनका गुट लहूलुहान हो रहा है। यह साफ दिखाई दे रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच का आदेश नहीं देंगे।

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यह बात अब ओपन सीक्रेट हो चुकी है कि राजस्थान की मौजुदा राजनीति में वसुंधरा राजे को कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का समर्थक बताया जाता है। इस तरह श्री सचिन पायलट के अनशन और कांग्रेस से बगावत को लेकर राजस्थान की राजनीति अभी खड्ड मड्ड सी दिखाई दे रही है। लेकिन इतना जरूर है कि सचिन पायलट के यही तेवर आगे भी जारी रहे तो उसका असर किस पर और कितना पड़ेगा इसका सभी राजनीतिक पर्यवेक्षकों को बेसब्री से इंतजार रहेगा। क्योंकि राजस्थान की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा और 6 माह में होने जा रहे राजस्थान विधानसभा चुनाव में हार-जीत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकेगा।

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