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हिन्दू-मुसलमान में नफरत पैदा करने के लिए औरंगजेब को बताया जा रहा निर्दयी ज्ञानवापी पर मुस्लिम पक्ष की दलील

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(शशि कोन्हेर) : ज्ञानवापी के पूरे परिसर का भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) से साइंटिफिक सर्वे कराने की हिन्दू पक्ष की अर्जी के खिलाफ मुसलिम पक्ष ने आपत्ति दाखिल कर दी है। जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में दाखिल आपत्ति में मुसलिम पक्ष अंजुमन इंतजामिया मसाजिद व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने 42 बिंदुओं पर छह पेज में आपत्ति दर्ज कराई है। इसमें कहा गया है कि हिन्दू-मुस्लिम में नफरत पैदा करने लिए औरंगजेब को निर्दयी बताया जा रहा है। मुस्लिम शासकों को आक्रमणकारी बताया जा रहा है।

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इसके साथ ही मामले को खारिज करने की मांग रखी है। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की तरफ से ज्ञानवापी स्थित मस्जिद को हजारों वर्ष पुराना बताया गया और कहा गया कि मुगल बादशाह औरंगजेब निर्दयी नहीं था। वर्ष 1669 में औरंगजेब के आदेश पर कोई मंदिर नहीं तोड़ा गया था।

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अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी के सचिव मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी की तरफ से जिला जज की अदालत में दाखिल आपत्ति में कहा गया कि काशी में काशी विश्वनाथ के दो मंदिर की धारणा न पहले थी और न आज है। ज्ञानवापी में मिली आकृति शिवलिंग नहीं है, वह फव्वारा है।

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कहा कि वादी पक्ष की ओर से यह कहना कि मंदिर को मुसलमान आक्रमणकारी ने तोड़ दिया और सन् 1580 AD में उसी स्थान पर राजा टोन्डल मल ने मंदिर पुनः स्थापित किया, सरासर गलत व झूठ है। दुर्भावनावश हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत पैदा करने के उद्देश्य से मुस्लिम शासकों को आक्रमणकारी कहा है।

औरंगजेब बादशाह के फरमान से किसी आदि विश्वेश्वर मंदिर को सन् 1669 ई0 में नहीं तोड़ा गया और न तो काशी में दो काशी विश्वनाथ मंदिर (पुरानी एवं नई) के होने की कोई धारणा (Concept) कभी नहीं था और न तो आज ही है। जो तथ्य बताए जा रहे हैं वह सरासर गलत व झूठ है। कहा कि वादी का यह कहना कि लार्ड शिवा के उपासक और भक्त विश्वेश्वर मंदिर के पुनः स्थापन के लिए 1670 से प्रयास करते चले आए, सरासर
गलत व झूठ है। इस सम्बन्ध में आज तक कोई भी अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है।

यह भी कहा गया कि कथित शिवलिंग के साइंटिफिक सर्वे के हाईकोर्ट के आदेश पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मसाजिद कमेटी की विशेष अनुमति याचिका पर प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अगली तिथि छह जुलाई नियत की है।

मुस्लिम पक्ष की ओर से दाखिल आपत्ति में अयोध्या और वर्तमान मुकदमे में जमीन आसमान का फर्क का दावा किया गया। कहा गया कि अयोध्या प्रकरण में एएसआई ने जमीन की खुदाई करके रिपोर्ट दी थी, जो वर्तमान विषय वस्तु में संभव नहीं है।

हिन्दू पक्ष ने सर्वे की मांग की है

शृंगार गौरी केस की चार वादी-लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास व रेखा पाठक की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने जिला जज की अदालत में 16 मई को सर्वे कराने की मांग वाली अर्जी दाखिल की थी। उसके मुताबिक पिछले वर्ष कोर्ट कमीशन की कार्यवाही में ज्ञानवापी परिसर स्थित ढांचे के खम्भों पर संस्कृत के श्लोक, घंटियां, त्रिशूल व स्वास्तिक के चिह्न, शृंगार गौरी का विग्रह समेत हिंदू देवी-देवताओं व मंदिरों से जुड़े साक्ष्य सामने आए थे।

वादियों ने सम्पूर्ण परिसर का जीपीआर तकनीकी या कार्बन डेटिंग से सर्वे कराने की मांग की है। अधिवक्ता के अनुसार परिसर की एएसआई जांच से यह भी पता चल सकेगा कि कोई नया निर्माण नहीं कराया है बल्कि मंदिर के ऊपर निर्माण कर मस्जिद का स्वरूप दिया गया है। उन्होंने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के 12 मई के एएसआई सर्वे के आदेश का भी हवाला दिया है।

दीवानी मुकदमे की वैधता पर हाईकोर्ट में सुनवाई जारी

वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वाराणसी में ज्ञानवापी परिसर के एएसआई से सर्वे कराने के वहां की अदालत के आदेश और दीवानी मुकदमे की वैधता को लेकर दाखिल याचिकाओं के कुछ बिंदुओं पर 26 मई को फिर से सुनवाई करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड एवं अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी की याचिकाओं पर दिया है।

कोर्ट ने इन याचिकाओं पर दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया था। साथ ही फैसला आने तक सर्वे कराने के वाराणसी की अदालत के आदेश पर लगी रोक बढ़ा दी थी। फैसला लिखते समय कोर्ट ने कुछ बिंदुओं पर पक्षकारों के अधिवक्ता से स्पष्टीकरण के लिए फिर से सुनवाई का आदेश दिया है।

याचियों की ओर से कहा गया कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की धारा चार के तहत दीवानी मुकदमा पोषणीय नहीं है क्योंकि कानून है कि कोई आदेश हुआ है और अन्य विधिक उपचार उपलब्ध नहीं है तो संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका में चुनौती दी जा सकती है।

दूसरी ओर मंदिर पक्ष का कहना था कि भगवान विश्वेश्वर स्वयंभू भगवान हैं। वह प्रकृति प्रदत्त हैं। वह मानव निर्मित नहीं हैं। इस बिंदु पर सुप्रीम कोर्ट के एम सिद्दीकी बनाम महंत सुरेश दास व अन्य केस में फैसले का हवाला दिया गया। कहा गया कि मूर्ति स्वयंभू प्राकृतिक है इसलिए प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा चार इस मामले में नहीं लागू होगी। मंदिर पक्ष का यह भी कहना था कि व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश सात नियम 11 की अर्जी वाद के तथ्यों पर ही तय होगी।

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