बिलासपुर

अरपा का 94 साल पुराना पुल दुखी हैं शहर की दोगलाई से… एक विधायक उवाच…पुल से लगाव सा है.. इसे संजो कर रखना चाहिए.. दूसरा विधायक.. बिलासपुर की शान है पुराना पुल… इसे धरोहर की तरह संवारा जाए… तीसरा… इसे सजाया संवारा जाए… पर हुआ कुछ नहीं..

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(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – आज से लगभग 100 साल से भी कई दशक पहले जब बिलासपुर, चाटापारा गोंडपारा और जूना बिलासपुर तथा कुदुदंड जैसे गांवों के रूप में जाना जाता था। तब इन गांवों की आबादी बढ़ने के साथ इन्हें अरपापार सरकंडा गांव से जोड़ने के लिए सन 1924 में अरपा के पुराने पुल का निर्माण शुरू हुआ जो 1926 में बनकर पूरा भी हो गया। और फिर इस पुल ने बिलासपुर के सभी (ऊपर बताए गए) गांवों को जोड़कर ऐसी विकास गाथा लिखी जिसके कारण आज अरपानदी के दोनों ओर की बस्तियां बिलासपुर महानगर का रूप ले चुकी है।

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बेशक, बिलासपुर के इस विकास में इस पुराने पुल का अहम रोल है। इसी पुल से वो तमाम बड़ी-बड़ी मशीनें, बड़े-बड़े ट्रकों पर सवार होकर निकली हैं जिनके कारण कोरबा उद्योग नगरी बना है। अंग्रेजों का बनाया यह पुल अभी भी बेहद मजबूत है। इसकी हड्डियां कमजोर नहीं हुई है। लगातार तीन पीढ़ियों तक बिलासपुर की सेवा करने वाले इस पुल के नमक को हम जिस तरह भूलते जा रहे हैं। उसे कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता। तखतपुर विधायक रश्मि सिंह ने बिलासपुर को अपनी जन्मभूमि बताते हुए कहा कि इस पुल को बचपन से देखते आई हूं और मेरा बहुत लगाव है। ऐसी प्लानिंग होनी चाहिए कि इस पुल को कुछ ना हो और इसे हमेशा रहना चाहिए। बिलासपुर विधायक श्री शैलेश पांडे ने भी अपने मुखारविंद से इस पुल को ऐतिहासिक धरोहर बनाने की बात कही है। बेलतरा क्षेत्र के विधायक रजनीश सिंह कहते हैं कि यह अपनी ऐतिहासिकता के कारण बिलासपुर की शान बन गया है। और इस ऐतिहासिक धरोहर से जरा भी छेड़छाड़ नहीं की जाती। पर्यटन मंडल के अध्यक्ष श्री अटल श्रीवास्तव का कहना है कि पत्थरों से बने इस पुल की ढलाई चूना और गोंद से की गई है। उन्होंने भी इसे सहेज कर रखने की बात कही थी। महापौर ने बताया था कि इंग्लैंड की जिस कंपनी ने इसे बनाया है उसने भी नगर निगम को पत्र लिखकर इस पुल के हाल की खोज खबर ली है। सभी की इच्छा है कि बीते 97 सालों से बिलासपुर की सेवा करने वाले इस पुल को वृद्धाश्रम ना भेजा जाए। और सेवा-जतन तथा सौंदर्यीकरण से इसे इतना सुंदर बनाया जाए किस शहर के लोग और बाहर से शहर आने वाले इसे देखने और इस पर बिखरी बिलासपुर के इतिहास की सुगंध लेने पहुंचे। नेताओं के द्वारा कहा भी गया था कि नगर निगम ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में इस पुल को ले लिया है। और इसके कायाकल्प की तैयारी की जा रही है। यह तय हो गया है कि स्कूल पर बैठने की व्यवस्था के साथ वाकिंग की सुविधा होगी सौंदर्यीकरण के लिए लाइटिंग होगी तरह-तरह की कलाकृतियां बनाई जाएंगी।

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इसके अलावा सेल्फी जॉन और फूड स्टाल आदि की सुविधा भी यह मुहैया कराई जाएगी। लेकिन यह सब बातें अब पुरानी हो गई है और मुझे लगता है कि जिन्होंने इन बातों को कहा था उन्हें ये याद भी नहीं होंगी।

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… अब कड़वी सच्चाई देखने के लिए आपको अधिक दूर नहीं जाना है। अगर आप बिलासपुर शहर से प्रेम करते हैं। यहां की माटी, यहां की पुरानी ऐतिहासिक धरोहरों से आपका लगाव है। तो आप देवकीनंदन चौक से सरकंडा जाने वाले रास्ते पर आज भी मजबूती से खड़े इस पुल की चिंता करेंगे। इसे सजाना सवारना तो दूर शहर के कर्णधारों ने इसके सीने पर अमृत मिशन की दानवाकार पाइपलाइन बिछाई दी है। और इसे सजाने संवारने तथा धरोहर के रूप में विकसित करने के लिए फिलहाल तो जमीन पर कोई सक्रियता दिखाई नहीं दे रही है। सवाल यह है कि क्या बिलासपुर के कर्णधार और हुक्मरान इस पुल को लेकर बड़ी-बड़ी डींगे ही हांकते रहेंगे या फिर ऐसे छोटे-छोटे काम कर दिखाएंगे जिससे इस पुल की जवानी, और जवानी की कहानी हमारी पीढ़ी से होते हुए अगली पीढ़ी के दिलों तक जा पहुंचे।

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