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रेसलर विनेश फोगाट ने पीएम मोदी को लिखा खुला पत्र,  पुरस्कार वापस करने का ऐलान….

(शशि कोंन्हेर) : कुश्ती महासंघ के चुनाव और यौन उत्पीड़न के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के करीबी संजय सिंह के अध्यक्ष चुने जाने के बाद खिलाड़ियों ने एक बार फिर मोर्चा खोल दिया। इसका असर यह हुआ कि खेल मंत्रालय ने संघ को निलंबित कर दिया। हालांकि खिलाड़ियों का गुस्सा शांत नहीं हुआ है। साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया के बाद अब विनेश फोगाट ने भी बड़ा ऐलान किया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुला पत्र लिखते हुए अर्जुन पुरस्कार और खेल रत्न को वापस करने का ऐलान कर दिया है।

फोगाट ने अपने पत्र में लिखा, हमारी जिंदगियां उन फैंसी किताबों जैसी नहीं है। कुश्ती की महिला पहलवानों ने पिछले कुछ सालों में जो भोगा है उससे समझ आता ही होगा कि हम कितान घुट घुटकर जी रही हैं। अब साक्षी ने भी संन्यास ले लिया है। जो शोषण करने वाले हैं उसने भी अपना दबदबा रहने की मुनादी कर दी है। बल्कि बहुत ही भौंडे तरीके से नारे भी लगवाए। आप सिर्फ पांच मिनट निकालकर उस आदमी के मीडिया को दिए गए बयानो को सुन लीजिए। आपको पता लग जाएगा कि उसने क्या किया है। उसने महिला पहलवानों को मंथरा बताया। उसने महिला पहलवानों को असहज कर देने की बात टीवी पर कबूली। उससे ज्यादा गंभीर है कि उसने कितनी ही महिला पहलवानों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। यह बहुत ही भयावह है।
विनेश ने आगे लिखा, इस घटनाक्रम को भूलना आसान नहीं है। सर जब मैं आपसे मिली तो यह सब आपको बताया था। हम न्याय के लिए पिछले कई सालों से ड़कों पर घिसड़ रहे हैं। कोई हमारी सुध नहीं ले रहा है। हमारे मेडलों को 15 रुपये का बताया जा रहा है। लेकिन ये मेडल हमें जान से भी प्यारे हैं। जब हमने न्याय के लिए आवाज उठाई तो हमें देशद्रोही बताया गया। मैं आपसे पूछना चाहती हूं कि क्या मैं देशद्रोही हूं।

उन्होंने लिखा, बजरंग ने किस हालात में अपना पद्मश्री लौटाने का फैसला लिया होगा। मुझे नहीं पता पर मैं उसकी फोटो देखकर अंदर से घुट रही हूं। उसके बाद अब मुझे पुरस्कारों से घिन आने लगी है। जब पुरस्कार मिले थे तो मेरी मां ने मिठाई बांटी थी। कई बार सोचकर घबरा जाती हूं कि मेरी काकी ताई टीवी में हमारी हालत देखती होंगी तो मां से क्या कहती होंगी। भारत की कोई मां नहीं चाहेगी की उसकी बेटी की यह हालत हो। मैं अपना मेजर ध्यानचंद खेल रत्न और अर्जुन अवॉर्ड आपको वापस करना चाहती हूं ताकि सम्मान से जीने की राह में पुरस्कार हमारे ऊपर बोझ ना बन सकें।

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