अम्बिकापुर

मनाया गया पारंपरिक त्योहार करमा


लखनपुर (सरगुजा)
(मुन्ना पाण्डेय) : सरगुजा लोक त्योहारो के फेहरिस्त में करमा त्योहार का विशेष महत्व है इसे पद्मा एकादशी भी कहा जाता है। करमा तिहार 25 सितम्बर दिन सोमवार को नगर लखनपुर सहित आसपास ग्रामीण अंचलों में उल्लास के साथ मनाया गया। दरअसल तीजा त्योहार के ठीक आठ रोज बाद भाद्र मास के शुक्ल एकादशी तिथि को करमा त्योहार मनाये जाने की परम्परा रही है। इस त्यौहार को मनाये जाने लोगों में खासा उत्साह देखा जाता है । करमा त्योहार मनाने आठ रोज पहले महिलाओं युवतियों द्वारा जौ मक्का धान गेहूं आदि बीजों का जाई बोया जाता है। इस दिन महिलाएं लड़कियां निर्जला उपवास रख एकत्रित होकर करमदेव का पूजा अर्चना करती है। करमा त्योहार को प्रकृति पूजा से भी जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि पेड़ शुद्ध वायु के साथ हमें फल छाया प्रदान करते हैं। पर्यावरण सुरक्षा की कामना से भी इस पर्व को मनाया जाता है । शायद यही वजह है कि करम डाल को देवता मानकर पूजते हैं। इस त्यौहार में करमी पेड़ के डगाल की खास अहमियत होती है
ग्राम बैगा द्वारा करम डाल की पूजा कराने पश्चात करमा त्योहार से जुड़ी प्रचलित कथाएं महिलाओं को सुनाया जाता है। बाद पूजा अनुष्ठान मांदर के थाप पर थिरकते हुए महिला पुरुष हिल मिलकर करमा नृत्य करते हैं। लोक त्योहारो में मशहूर करमा त्योहार आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में पूरे दिलचस्पी के साथ मनाते हैं। महिलाएं सारी रात करम देव को रिझाने श्रृंखलाबद्ध होकर करमा नृत्य करते हैं। रियासत काल में राजमहल के सामने करम देव के किस्से कहानियां सुनने सुनाने के बाद करमा नृत्य का आयोजन हुआ करता था। पुरवासी महिलाएं राजमहल प्रांगण में एकत्रित होती थी।
कालांतर में किस्से कहानी पूजा अनुष्ठान का चलन तो बाकी है लेकिन करमा नृत्य किये जाने की प्रथा तकरीबन खत्म सा हो गया है। ग्रामीण अंचलों में करमा नृत्य किये जाने की चलन अब भी बरकरार है।
फिलहाल लखनपुर के अलावा गांवों में करमा त्योहार धूमधाम से मनाया गया। मांदर के थाप लोग ही नहीं अपितु सारी रात भी थिरकती रही।
करमा त्योहार में पकवान खाने खिलाने के साथ कच्ची महुआ शराब पीने पिलाने का भी दौर चलता है। आदिवासी इलाकों में करमा पर्व लगभग सप्ताह भर तक मनाया जाता है। करमा मनाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है।

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