छत्तीसगढ़

विश्व में पहली बार हुआ ऐसा..क्या आपको मालूम है कि संपूर्ण क्रांति के अगुवा लोकनायक जयप्रकाश नारायण को उनके जीवित रहते ही, लोकसभा में दे दी गई थी श्रद्धांजलि..!

(शशि कोन्हेर) : आज 11 अक्टूबर को बिग बी अमिताभ बच्चन का बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे युवाओं को यह बताना जरूरी है कि आज ही 1975 में हुई संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण की भी जयंती है। अंग्रेजों के खिलाफ निर्णायक साबित हुए “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आंदोलन के “थिक टैंक जयप्रकाश नारायण देश के ऐसे दूसरे नेता थे, जिन्हें लोकनायक कहा गया। उनके पहले स्वर्गीय बाल गंगाधर तिलक के नाम के आगे लोकमान्य शब्द जुड़ा था। इन दोनों महापुरुषों को मिली लोकमान्य और लोकनायक की उपाधि किसी सरकार की चाटुकारिता का परिणाम नहीं थी। उन्हें लोकमान्य और लोकनायक का यह सम्मान इस देश की करोड़ों करोड़ जनता ने दिया था। और वे जब तक जीवित रहे।

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लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लोकनायक जयप्रकाश नारायण ही कहलाए। पहले वामपंथी और फिर नेहरू गांधी से प्रभावित लोकनायक जयप्रकाश नारायण देश की आजादी के बाद राजनीति छोड़ कर भूदानी संत विनोबा भावे की डगर पकड़ चुके थे। 1972 में उन्होंने चंबल क्षेत्र के 400 ऐसे खूंखार डकैतों का आत्मसमर्पण कर आया था, जिनके नाम से पूरा चंबल का इलाका थरथर का कांपा करता था।

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इसके ठीक 3 साल बाद 1975 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा थोपे गए आपातकाल के विरोध में पूरे देश को एकजुट कर समग्र क्रांति का  निर्णायक आंदोलन चलाने वाली शख्सियत का नाम था लोकनायक जयप्रकाश नारायण। डायलिसिस पर पड़े लोकनायक ने देश की जनता के लिए ऐसी तीव्रता से लड़ाई लड़ी की आपातकाल थोपने वाली इंदिरा गांधी की सरकार का दिल्ली से नामोनिशान मिट गया। इसके बाद केंद्र सत्तारूढ़ हुई पहली गैर कांग्रेसी (जनता पार्टी) सरकार के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे। जयप्रकाश नारायण ने किसी भी सरकारी पद को लेने से साफ इनकार कर दिया था। 

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कांग्रेस और सीपीआई को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल देश के सभी दलों ने लोकनायक जयप्रकाश को अपना नेता मान लिया था। ऐसे लोकनायक को 1978 में उनके ही द्वारा स्थापित सरकार की पेशकश पर लोकसभा ने तब श्रद्धांजलि दे दी जब उनका निधन ही नहीं हुआ था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी यह। 23 मार्च 1979 को आकाशवाणी के समाचार की त्रुटि से पूरे देश में यह खबर फैल गई कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण नहीं रहे।

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इस खबर के आधार पर उस समय के लोकसभा अध्यक्ष स्वर्गीय केएस हेगड़े ने प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई (तत्कालीन) के हवाले से सदन को यह सूचना दी कि संपूर्ण क्रांति के नायक.. लोकनायक जयप्रकाश नारायण नहीं रहे। इसके बाद लोकसभा में दो मिनट का मौन रहकर जयप्रकाश नारायण जी को श्रद्धांजलि देने के बाद लोकसभा स्थगित कर दी गई।

थोड़ी ही देर बाद यह समाचार गलत साबित होने पर केन्द्र की जनता पार्टी सरकार को काफी शर्मसार होना पड़ा था। और आपातकाल के काले दौर  में  “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है”का आव्हान करने वाले इस महानायक को उनके जीते जी देश के सबसे बड़े सदन लोकसभा में श्रद्धांजलि दे दी गई। ‌ इसके बाद डायलिसिस पर होने के बावजूद लोकनायक जयप्रकाश नारायण 200 दिनों तक और जीवित रहे। बाद में 8 अक्टूबर 1979 को उनका देहावसान हो गया। और तब उन्हें दूसरी बार श्रद्धांजलि दी गई।

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