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लड़ाई झगड़ा पहलवानों का नहीं कुश्ती संघ पर कब्जे का है… पढिए एक हकीकत, क्यों लड़ रहे हैं पहलवान..?

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(प्रस्तुति-कमल दुबे) : कुश्ती संघ पहले हरियाणा के अखाड़ेबाज़ों के पास था। हरियाणा के अखाड़ेबाज़ों ने उस दौर में राज्य के बाहर का एक भी पहलवान, एक भी कोच टिकने नहीं दिया। जो आया, वो या तो सिलेक्शन का दरवाज़ा तोड़ ही न पाया और तोड़ भी गया तो प्रताड़ित होकर कुश्ती छोड़ गया। जिसने नहीं छोड़ी वो डोपिंग, और अनुशासनात्मक कार्रवाई के फंदे में लटका दिया गया। सारा मसला सिलेक्शन, और खेल कोटा में नौकरियों का है। किसी खिलाड़ी के अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट खेलने के बाद रेलवे, पुलिस, बैंक, अर्धसैनिक बल, या पीएसयू में नौकरी सुनिश्चित हो जाती है।

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अतः खेल संघ इन प्रतियोगिताओं में दाख़िल कराने भर के दस-बीस लाख ले लेते हैं। यह असल में सरकारी नौकरी दिलाने की रिश्वत है। हरियाणा में इस तरह खेल संघों के खिलवाड़ से सैकड़ों नौकरी पाए खिलाड़ी घूम रहे जिन्होंने कोई मेडल भले न जीता हो, भले ही पहला मुक़ाबला हारकर बाहर हो गए हों, मगर काग़ज़ पर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी, या अंतरराष्ट्रीय कोच हैं। कुश्ती संघ का झगड़ा इस काली कमाई पर क़ब्ज़े का भी है।

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फोगट परिवार कितना ईमानदार है, और हरियाणा के अखाड़ेबाज़ कितने देशभक्त हैं, यह किसी ग़ैर-हरियाणवी पहलवान या कोच से पूछो। बाक़ी एक नाबालिग़ महिला पहलवान को भगाने और यौन शोषण के मामले में हरियाणा के एक शादीशुदा कोच पर हाल ही में पोक्सो लगा है, हरियाणा के ही पहलवान सुशील कुमार हत्या के मामले में नामज़द हैं, सुशील के ही साथी रहे नरेश सहरावत नाबालिग़ की हत्या और रेप के मामले में जेल में है। नरसिंह यादव को डोपिंग में फंसाने की कहानी सब जानते ही हैं। बृजभूषण शरण सिंह भी शरीफ नहीं हैं लेकिन सही से पड़ताल हो तो हरियाणा के कुश्ती माफिया के सामने उनकी गुंडई कुछ भी नहीं है।

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