बिलासपुर

शिलान्यास-भूमिपूजन के दिन हुए खत्म..अब लोकार्पण-उद्घाटन से ही बनेगी बात..!

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(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – आमतौर पर विभिन्न राजनीतिक दलों के लोग और खासकर सत्ताधारी दल, चुनाव के नजदीक आते ही जगह-जगह शिलान्यास और भूमि पूजन का सिलसिला चालू कर दिया करते हैं। योजना चाहे 1-2 लाख की हो चाहे 10-20 करोड़ की..! सभी का इस घोषणा के साथ शिलान्यास और भूमि पूजन कर दिया जाता है कि, चुनाव जीत कर आयेंगे तो इस कार्य को जरुर पूरा करा देंगे। बिलासपुर शहर में प्रत्यक्ष निर्वाचन के दौर में एक महापौर महोदय थे। ( वो अभी भी हैं ) वे अपने कार्यकाल के अंतिम समय में या कहें चुनाव के ठीक पहले, एक-दो बोरा नारियल अपने कार की डिक्की में भरकर ले जाया करते थे। और जिस वार्ड की जनता, जो भी मांगा करती थी… डिक्की से तुरत-फुरत एक नारियल निकालकर उसे वहीं फोड़कर शिलान्यास और भूमि पूजन डिक्लेयर कर दिया जाता था। हालांकि इनमें से बहुत से कार्यो की किस्मत में “अधूरे पड़े रहना अथवा शुरू ही ना हो पाना” बदा था। और ऐसा ही हुआ। थोक में किए गए भूमिपूजन व शिलान्यास बेकार साबित हुए।

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किसी का भी काम शुरू नहीं हुआ और जो शुरू हुए वे भी अधूरे (सरकारी भाषा में कार्य प्रगति पर) पड़े रहे। बहरहाल, कार्यकाल खत्म होने के कारण इन महापौर महोदय को निगम का पिंड छोड़कर घर पर बैठना पड़ गया। यह परंपरा सी चली आ रही है कि जो भी पार्टी सत्ता में आती है उसके द्वारा चुनावी वर्ष में “जो मांगोगे वहीं मिलेगा” की तर्ज पर धड़ाधड़ शिलान्यास और लोकार्पण कर दिए जाते हैं। पता नहीं इसके पीछे उनका क्या सोच रहता है..? लेकिन शायद जमीनी सच्चाई यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी के चार साढे चार साल पूरे होते होते आम जनता (और अफसर ) भी चुनावी मोड में आ जाती है। इसके बाद जनता के मानस पर कार्यों के लोकार्पण का तो असर पड़ता है। लेकिन भूमि पूजन और शिलान्यास होते देख उसके मन में यह भाव आता है कि… चुनाव लठिया गे हे, त ये सब नाटकबाजी होते रईही..! और उस दौरान अगर आप लाखों रुपए की घोषणा भी कर दें तब भी जनता‌ (जो चुनाव के ठीक पहले मतदाता हो जाती है ) उसे आप की चुनावी मजबूरी ही समझती है। उसके मन में यह भाव तो रहता ही है कि चुनावो के नजदीक आने से ही भूमिपूजन और शिलान्यास हो रहे हैं। हमारा अनुभव है कि आपने चार-साढे चार साल में जो भी वादे और निर्माण कार्य पूरे कर दिए हैं।

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जनता के मन में उसी से आप का रिपोर्ट कार्ड बनना है। इसकी बजाय चुनाव की वेला में लाखों और करोड़ों की घोषणा का, भूमि पूजन और शिलान्यास का जनता के बीच “धेला-पाई”के बराबर भी असर नहीं पड़ता। इसीलिए अच्छा यही है कि छोटी बड़ी घोषणाओं और नई योजनाओं के भूमि पूजन तथा शिलान्यास कार्य को 4 साल तक ही पूरे करा लेना लिए जांय। अंतिम पांचवा वर्ष सिर्फ लोकार्पण का, उद्घाटन का होना चाहिए…!सड़क हो, पुल हो, भवन हो, फ्लाईओवर हो, कोई नया कॉलेज कार्यालय खोलना हो.. चुनावी वर्ष में इन सबके सिर्फ लोकार्पण और उद्घाटन से ही जनता के मन पर अच्छा असर पड़ता है, शिलान्यास व लोकार्पण का नहीं। इसीलिए हम यह कह रहे हैं कि अब भूमि पूजन और शिलान्यास (छोटे-मोटे कार्य छोड़कर) का समय खत्म हो चुका है। चुनावी वर्ष में ना तो शिलान्यास का कोई असर पड़ता है और ना भूमि पूजन तथा बड़ी-बड़ी घोषणाओं का। बाकी..आप जानों आपका काम जाने..!

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