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ऐसी जनसंख्या नीति आए जिसमें छूट किसी को न हो….. विजयादशमी पर बोले मोहन भागवत


(शशि कोन्हेर) : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मोहन भागवत ने कहा है कि भारत को गंभीर मंथन कर एक व्यापक जनसंख्या पॉलिसी लाने की जरूरत है. उन्होंने नागपुर में आयोजित संघ के विजयादशमी उत्सव कार्यक्रम में कहा कि जनसंख्या में प्रमाण का भी संतुलन चाहिए. उन्होंने कहा कि जनसंख्या असंतुलन का गंभीर परिणाम हम भुगते हैं. ये पचास साल पहले हुआ था लेकिन आज के समय में भी ऐसा हो रहा है. पूर्वी तिमोर नाम का एक नया देश बना, दक्षिण सुड़ान नाम का एक देश बना. कोसोवो बना.

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जनसंख्या में अंतर आने से नए देश बन गए, देश टूट गए. जन्म दर इसका देश भाग है, लेकिन जोर-जबरदस्ती, छल-कपट और लालच से मतांतरण इसका बड़ा फैक्टर है. और जहां सीमा पार से घुसपैठ होती है वहां घुसपैठ से भी जनसंख्या पैटर्न में बदलाव आता है. इस संतुलन का ध्यान रखना देशहित की दृष्टि से अनिवार्य बात है.

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एक व्यापक जनसंख्या नीति की पैरवी करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि जनसंख्या की एक समग्र नीति बने और वे सब पर समान नीति से लागू हो, और एक बार जनसंख्या नीति बनने के बाद किसी को छूट न मिले, और समाज इसके स्वीकार करे इसलिए मन बनाकर ऐसी जनसंख्या नीति लाया जाए ऐसी आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि अगर जनसंख्या नीति बन भी जाए और समाज स्वीकार न करे तो ऐसी स्थिति में जनसंख्या नीति क्या कर पाएगी?

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संघ प्रमुख ने कहा कि अगर लाभ देने वाली बात है, स्वार्थ की बात है तो समाज सहर्ष स्वीकार करता है, उसके लिए समझाना नहीं पड़ता है. अगर लोगों को लगता है कि 3 साल या 5 साल के बाद लाभ मिलने वाला है.

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मोहन भागवत ने कहा कि लेकिन जहां देश के लिए छोड़ना पड़ता है, मुझे नहीं मिलेगा, उसे मिलेगा ऐसी भावना आती है तब क्या होगा? ऐसी स्थिति में समाज में सहयोग दिखता है या प्रतिरोध दिखता है. जहां समाज में त्याग करने की जरूरत होती है समाज को चाहिए कि वो इसे भी स्वीकार करे.

चीन की जनसंख्या नीति की खामियों की ओर इशारा करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि हम अपने देश में जनसंख्या को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन हमें ये भी देखना चाहिए कि चीन में एक संतान की नीति की वजह से क्या हुआ? इस देश ने सिंगल चाइल्ड पॉलिसी को अपनाया और अब चीन बूढ़ा हो रहा है. उन्होंने कहा कि 57 करोड़ युवाओं के साथ भारत अगले 30 साल तक जवान राष्ट्र बना रहेगा. लेकिन 50 साल के बाद भारत का क्या होगा? क्या हमारे पास अपनी आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन रहेगा?

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