गणेशोत्सव की तैयारी में जुटे है मूर्तिकार, प्रतिमाओं को दे रहे है अंतिम रूप, रतनपुर की मूर्तिकला है बेजोड़ और बेमिसाल…..
(विजय दानिकर) : बिलासपुर – हमारे भारतीय धर्म संस्कृति में भगवान श्री गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है,कोई भी शुभ कार्य करने के पूर्व गणेश जी की पूजा पाठ की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है या फिर ये कहे कि गणेश जी की हमारी धर्म संस्कृति के शुभशंकर है, जिन्हें विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता माना जाता है,तो इस भादो महीने में आने वाला गणेश चतुर्थी अब कुछ ही दिन शेष रह गया है, जिसमे रतनपुर के मूर्तिकारो के द्वारा गणेश जी की प्रतिमाओ को अंतिम रूप देने की तैयारी में जुट गए है।गणेश चतुर्थी में लोगो के मन में एक विशेष उत्साह देखने को मिलता है,जिसकी तैयारी में रतनपुर के मूर्तिकार चित्रकार परिवार के लोगो की मूर्ति बनाने की कला बेमिसाल है।
यह बेजोड़ मूर्तिकला जो पूरा छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है, इन मूर्तिकारो के पूर्वज उड़ीसा के रहने वाले थे जो रतनपुर में आकर के बस गए थे और मूर्ति बना के बेचने का कार्य शुरू किये थे और आज कई सौ वर्ष बीतने के बाद भी उंनके बताए अनुसार बारहवां पीढ़ी है। आज भी ये मूर्तिकलाओ में पारंगत हासील किये हुए है,आज उंनके परिवार के आमदनी का मुख्य जरिया मूर्ति निर्माण ही है जिसमे हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी गणेश पाख के दो माह पूर्व से उंनके द्वारा गजानन जी महाराज की मूर्ति निर्माण का काम शुरू कर दिया गया है इन मूर्ति निर्माण के कार्य में ये मूर्तियो को लाल और काली मिट्टी से ही बना करके उसमे जान फूंक दिया जाता है, जिसको देखने से यह जान पड़ता है मानो साक्षात लंबोदर स्वामी विराजमान है, खास बात यह है कि मिट्टी से बनी इन मूर्तियो को विसर्जन के दौरान पानी में आसानी से घुल जाता है और पर्यावरण को किसी भी प्रकार से कोई नुकसान नही पहुंचता,इन मूर्ति के निर्माण की परंपरा में इनके द्वारा गणेश जी की छोटी मूर्ति से लेकर के चार से छः फीट तक की मूर्ति बनाई जाती है जहा अब ये मूर्तियो की ग्राहको की पूछपरख भी शुरू हो गई है, और अब इन मूर्तियो को आकार देने के बाद अब अंतिम रूप देने की तैयारी में रंगरोगन किया जा रहा है। वही अब इन चित्रकारो के परिवार के द्वारा यह उम्मीद जताया जा रहा है कि इस वर्ष में इन मूर्तियो की बिक्री में इजाफा होने की संभावना अच्छी है।