देश

ज्ञानवापी विवाद पर ताजमहल और लाल किले को लेकर…क्या बोले इतिहासकार इरफान हबीब..?

(शशि कोन्हेर) : देश में ज्ञानवापी से लेकर कुतुब मीनार में मूर्तियों को लेकर विवाद चल रहा है. ऐसे में लेखक और इतिहासकार एस इरफान हबीब से इन दोनों मसलो पर कहा कि इतिहास ने कभी इस बात से इनकार नहीं किया कि मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं, ये बातें सब इतिहास में दर्ज हैं. जो दावे किए जा रहे हैं कि पहली बार पता चल रहा है. ये सब मनगढंत है. उन्होंने कहा कि एक बार सारे स्ट्रक्चर को तोड़ दें. ध्वस्त करके देख लें. सब कुछ सामने आ जाएगा. इतनी डिबेट करने की जरूरत नहीं है.

Advertisement

उन्होंने कहा कि यह दावा गलत है कि सब कुछ पहली बार कहा जा रहा है और पता चल रहा है. इतिहासकारों ने साक्ष्य पाया है कि मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गईं. ‌अगर हम इतिहास में जाएंगे तो औरंगजेब के कई सारे फरमान हैं जिन्हें इतिहासकारों ने भी लिखा है कि मंदिरों को तोड़ा गया और वहां मस्जिदें बनाई गईं. यहां तक कि मंदिरों को क्यों तोड़ा गया? उसका भी अपना एक अलग इतिहास है.

Advertisement
Advertisement

सब कुछ इतिहास में दर्ज, कुछ नई बात नहीं

Advertisement

एस इरफान हबीब कहते हैं कि उस काल में जो कुछ भी हुआ, वह सब इतिहास में दर्ज है लेकिन आज जो दावा किया जा रहा है कि यह पहली बार लोगों को बताया जा रहा है और इतिहासकारों ने कुछ नहीं बताया है, यह सब गलत बातें हैं. यह सब चीजें पहले से ही इतिहास में दर्ज थीं. बात यह है कि आप इतिहास में कितना पीछे जाना चाहते हैं? आप मध्यकालीन युग में ही क्यों रुकते हैं और पीछे क्यों नहीं जाते?

Advertisement

ब्राह्मण शासक शुंग ने बौद्ध विहार तोड़े

उन्होंने कहा कि अगर आपको इतिहास को ही सही करना है तो आप बौद्ध काल में जाइए‌. जहां अशोका के बाद पुष्यमित्र शुंग जो ब्राह्मण था और अशोक का दरबारी था. जब उसके पास शासन आया और साम्राज्य स्थापित हुआ तो उसने सारे बौद्ध विहार तोड़ दिए, यह सब भी इतिहास में दर्ज है. मगर, वोट बैंक के लिए ये मसला नहीं है.

तो मुसलमानों ने शिवलिंग की बड़ी इज्जत की

हबीब ने कहा कि आपको हिंदू-मुस्लिम विवाद का इतिहास रचना है और दिखाना है कि मध्यकालीन भारत में कुछ नहीं हुआ. सिवाय हिंदू-मुस्लिम और मंदिर तोड़ने के. उन्होंने ज्ञानवापी मामले में कहा कि वह शिवलिंग कैसे हो सकता है और वह वहां कैसे रहा, जहां 400 साल से मस्जिद चल रही है. अगर मुसलमान चाहते तो उसे खत्म कर सकते थे. वह शिवलिंग को कैसे संभाल कर रखे हुए हैं. यानी मुसलमानों ने उसकी बड़ी इज्जत की और उसको कायम रखा.

ज्ञानवापी में शिवलिंग नहीं, सिर्फ फव्वारा है

उन्होंने कहा कि लेकिन वह शिवलिंग नहीं है. वह सिर्फ फव्वारा है और बड़ी मस्जिदों में जगह-जगह फव्वारे मिलेंगे. मेरठ में हमारी फौज वाली मस्जिद है वहां पर भी फाउंटेन है जितनी भी बड़ी मस्जिदें हैं जहां जगह है- वहां वजू के लिए जगह बनाई जाती है और ब्यूटीफिकेशन के लिए फाउंटेन लगाया जाता है और यह उसी तरह का फव्वारा है.

हबीब का कहना था कि वह फव्वारा बहुत दिन से बंद है. बहुत लोगों ने उसमें काफी नीचे तक सीक डालकर देखा है.‌ लेकिन शिवलिंग इस तरह नहीं होता है. ये फव्वारा अब बहुत सालों से फंक्शनल नहीं है और हमारे बहुत सारे फव्वारे बंद पड़े हुए हैं. ‌उन्होंने कहा कि यह एक्सेप्टेड सेट है कि उस जमाने में बहुत सारे मंदिर तोड़े गए और उस पर मस्जिद बनाए गए. क्योंकि वह अपनी अथॉरिटी को दिखाने के लिए मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाते थे.

इन हिंदू शासकों ने तो मंदिर भी तोड़े

बहुत सारे हिंदू राजा हैं, जिन्होंने भी यह काम किया. वह भी अपना शक्ति प्रदर्शन करना चाहते थे. वो जिसको हराते थे, उनके इष्ट देव के मंदिर को तोड़ते थे और अपनी देवी को स्थापित करते थे. लेकिन यह उस समय एक परंपरा थी. कश्मीर का एक राजा हर्ष था, जो इतिहास में पहचाना जाता है. उसने बहुत सारे मंदिर तोड़े. चोला राजाओं ने बंगाल की सेना डायनेस्टी पर हमला किया और हमले के बाद जितने मंदिर थे, उन सब को तोड़ा और वहां से कुछ मूर्ति लेकर दक्षिण भारत चले गए. जबकि दोनों हिंदू थे.

कुतुब मीनार में सब कुछ शिला लेख पर लिखा है

आज के मॉडर्न इतिहास में यह कहना कि हम इसको रिक्लेम करेंगे- यह सियासत के सिवाय और कुछ भी नहीं है. हबीब ने कुतुब मीनार को कहा कि कुतुबुद्दीन ऐबक का अपना लिखा हुआ शिलालेख कुतुब मीनार पर है, जिसमें लिखा है कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी और वहां एएसआई की ओर से भी लिखा गया है इसलिए इसमें कोई खुलासा नहीं है जो दावा कर रहे हैं कि हमने निकाला. उन्होंने ये भी कहा कि कुतुबमीनार को विष्णु स्तंभ कहना शुरू कर दिया है जो कि गलत है।

तो देश के सारे स्ट्रक्चर तोड़कर देख लीजिए…

कुतुब मीनार का इतिहास कुतुब मीनार खुद बताता है और उस पर सब कुछ लिखा हुआ है. यह नए मटेरियल से बना हुआ है. यह मंदिरों के अवशेषों से बना है. किसके नीचे क्या है, यह कौन जानता है. जामा मस्जिद के नीचे बताया जा रहा है कि कुछ है. ऐसे जितने ढांचे हैं उन सबको अब तोड़ दीजिए. ताजमहल-लालकिला तोड़ दीजिए. जामा मस्जिद को ध्वस्त करके निकाल कर देखिए जो कुछ मिलेगा वह सामने आ जाएगा. यह यूनेस्को हेरीटेज साइट हैं. और दुनिया अच्छा मानती है. दूसरे लोगों ने किया है तो आप भी कर दीजिए.

ये सारे स्ट्रक्टर देश की धरोहर


यह सब आप आज के मुसलमानों पर क्यों थोप रहे हैं. यह मुसलमानों के हैरिटेज नहीं हैं. यह हमारे देश की धरोहर हैं. यह मिली जुली धरोहर हैं. जो अच्छा हुआ. एक बुरा हुआ. जिस पीरियड में आप जा रहे हैं वह सिर्फ हिंदू-मुस्लिम नहीं है बल्कि इसी जमाने में रामचरितमानस लिखी गई जो तुलसीदास ने लिखी. अकबर के दरबारी अब्दुल रहीम खानखाना और तुलसीदास एक-दूसरे के दोस्त थे. तुलसीदास पर ब्राह्मणों ने आरोप लगाया कि आप संस्कृत से हिंदी में अनुवाद कर रहे हैं तो आम जनता ‌भी पढ़ेगी. जबकि अकबर के दरबारी ने तुलसीदास की आर्थिक मदद भी की. इसी जमाने में महाभारत का तर्जुमा फारसी में हुआ लेकिन यह सब आपको नहीं दिखता. संस्कृत का उत्थान भी इसी जमाने में हुआ।

Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button