आजादी के लिए अंग्रेजो की गोलियों का किया सामना, पढ़िए शंकराचार्य स्वरूपानंद जी की जुबानी स्वतंत्रता की कहानी…
(दिलीप यादव) : बिलासपुर – ज्योतिषपीठ बदरीकाश्रम के जगतगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी के बारे में आज के युवा बस इतना ही जानते हैं कि वे महान संत हैं लेकिन देश की आजादी के लिए उनके साहस और संघर्ष की वीर गाथा भी हैं। आज वे 98 साल के हैं, उन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ पूरे दमखम से लड़ाई लड़ी। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों के हथियार ट्रेनों के माध्यम से उनके ठिकानों पर पहुंचाए जा रहे थे। वहां तक हथियार न पहुंचे, इसके लिए गांववालों के साथ मिलकर उन्होंने गाजीपुर – बनारस रेल पटरियां उखाड़ दीं। उस समय उनकी उम्र महज 18 साल थी। रेल पटरियां उखाड़ने की जानकारी जब अंग्रेज प्रशासन को हुई तो अंग्रेजों की टीम ने उन्हें पकड़ने रवाना हुई। उनसे छिपकर वे अपने साथियों के साथ नाव से चढ़कर नदी के रास्ते से जा रहे थे।
उस समय पूरे देशभर में सिर्फ एक ही आवाज गूंज रही थी, अंग्रेज प्रशासन को भगाओ और आजादी हासिल करो। गांव से लेकर बड़े नगरों के लोग लड़ाई में हिस्सा ले रहे थे। शंकराचार्य ने बताया कि 1942 में अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा किए गए असहयोग आंदोलन में 18 वर्ष की अवस्था में तत्कालीन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। उस समय वे गाजीपुर के रामपुर स्थित आश्रम में शिक्षा ले रहे थे। आश्रम में आसपास के गांव वाले भी आते थे। एक बार गांववालों के साथ मिलकर उन्होंने रामपुर स्थित पोस्ट ऑफिस को लूट लिया। वहां से मिले पैसे व स्टांप टिकट लोगों में बांट दिए गए। भारतीयों को परास्त करने के लिए अंग्रेज ट्रेनों से हथियार अलग – अलग जगह पर सप्लाई करा रहे थे।
हथियार परिवहन के बारे में पता चलने पर हथियार से भरी ट्रेन रोकने की योजना बनाई। हमने गांववालों के साथ मिलकर गाजीपुर बनारस के बीच की रेल पटरी उखाड़ दी। किसी ने रेल पटरी तोड़ने की खबर अंग्रेज प्रशासन तक पहुंचा दी। रेल प्रशासन ने तत्काल दल गठित किया, और देखते ही गोली मारने का अदेश देकर दल को गाजीपुर रवाना कर दिया। इसकी खबर हमें भी मिल गई। हमने सभी को लेकर एक बड़ी नाव से बनारस की ओर सफर करना चालू कर दिया। अंग्रेज सर्च लाइट मारकर गंगा में गोलियां चला रहे थे, लेकिन ईश्वर की कृपा से हम में से किसी को भी गोली नहीं लगी और हम सुरक्षित बनारस पहुंच गए।
शंकराचार्य जी ने बताया कि कुछ दिनों बाद मुखबिरी के चलते अंग्रेजों ने हमें पकड़ लिया। हमारे साथ 4-5 अन्य साथी भी गिरफ्तार हो गए। सभी को 9 महीने की सश्रम कारावास की सजा मिली। प्रशासन जेल के अंदर परेशान करता था।
जेल में अनशन किया, तब पूजा की अनुमति मिली : उन्होंने बताया कि जेल में सजा के दौरान जब हमें पूजन करने की अनुमति नहीं मिली तो हमने इसके लिए अनशन किया। इसके बाद जेलर ने पूजन करने की अनुमति दे दी। इस दौरान जेल में कई तरह की प्रताड़ना का सामना करना पड़ा।
आदिवासी के हितार्थ अस्पताल को दान करते हैं पेंशन : आजादी के बाद भारत सरकार ने शंकराचार्य जी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन भी तय की थी, जिसे वे लेकर परमहंसी गंगा आश्रम स्थित नेत्र चिकित्सालय व विश्व कल्याण आश्रम उत्तरांचल के आदिवासी जनों के हितार्थ संचालित अस्पताल को दान करते हैं।