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क्या आपको पता है कि राजस्थान के 9000 छोटे बड़े निजी अस्पताल 22 मार्च से लगातार क्यों बंद है..?

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(शशि कोन्हेर) : आश्चर्य की बात है हमारे ही देश के एक प्रदेश में इतना बड़ा मामला चल रहा है। और उस पर कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है। दरअसल, राजस्थान सरकार ने विधानसभा मेंं “राइट टू हेल्थ” विधेयक पेश किया था। जिसे सभी दलों की सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस *राइट टू हेल्थ” विधेयक की सबसे प्रमुख बात यह है कि इसमें हर नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकार दिया गया है। इस विधेयक के तहत कोई भी डॉक्टर अथवा अस्पताल, मरीजों का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकते। इतना ही नहीं वरन इस विधेयक में यह व्यवस्था रखी गई है कि इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के पास यदि पैसे नहीं भी हैं, अथवा उनके पास आयुष्मान कार्ड या स्वास्थ्य बीमा भी नहीं है। तो राज्य सरकार उनके इलाज पर होने वाले खर्च के बिल का भुगतान करेगी। जनता के स्वास्थ्य के अधिकार विधेयक में यह भी सख्त व्यवस्था रखी गई है कि कोई भी डॉक्टर अथवा अस्पताल पैसो के कारण किसी भी मरीज का इलाज करने से इनकार नहीं कर सकते। ऐसा करने पर पहली बार अथवा निजी अस्पताल अथवा पर 10 हजार रुपए और दूसरी बार 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा। इस बिल के राजस्थान विधानसभा में पेश होने और पास होने से वहां के तमाम डॉक्टर भड़के हुए हैं। और इसके विरोध में उन्होंने, खासकर निजी डॉक्टरों और 9000 से भी अधिक छोटे-बड़े निजी अस्पतालों ने हड़ताल शुरू कर दी है। डॉक्टरों का कहना है कि जब तक यह बिल वापस नहीं लिया जाएगा तब तक उनकी हड़ताल जारी रहेगी। हड़ताल करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि इस बिल में यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार भुगतान कब और कैसे करेगी..? हालांकि चिकित्सा मंत्री ने स्पष्ट कहा है कि जब इस बाबत रूल्स बनाए जाएंगे। तब यह सारी चीजें स्पष्ट कर दी जाएंगी। लेकिन इसके बावजूद डॉक्टरों को सरकार के वायदों पर भरोसा होता नजर नहीं आ रहा है। इसीलिए उनका विरोध तथा हड़ताल लगातार जारी है। छोटे बड़े सभी 9 हजार से अधिक अस्पतालों में 22 मार्च से इलाज बंद कर दिया गया है।

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निजी अस्पतालों में सन्नाटा पसरा हुआ है। अभी प्रदेश में सभी मरीजों का इलाज सरकारी जिला अस्पताल में किया जा रहा है। मुख्यमंत्री के सलाहकार ने मीडिया को बताया कि डॉक्टरों को इस विधेयक के जिन बिंदुओं पर आपत्ति थी। उन्हें वापस लेने पर सरकार सहमत हो गई है। लेकिन अब डॉक्टर इस समूचे विधेयक को ही रद्द करने अथवा पूरी तरह वापस लेने पर अड़े हुए हैं। यहां यह बताना लाजमी है कि इस विधेयक के विधानसभा में बारिश होने के साथ ही राजस्थान इस देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है। जहां “राइट टू हेल्थ” अर्थात स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम विधानसभा में पारित हुआ है।

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राइट टू हेल्थ बिल के जरिए आम नागरिक को स्वास्थ्य का अधिकार देने का प्रयास किया गया है। जिस के लागू होने के बाद कोई भी डॉक्टर अथवा अस्पताल, मरीज के इलाज से इंकार नहीं कर सकेंगे। इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के पास अगर पैसा नहीं भी है, तो भी डॉक्टरों को उसका इलाज करना ही होगा। वे किसी भी सूरत में इससे इंकार नहीं कर सकते। राईट टू हेल्थ बिल के अनुसार इसके तहत मरीजों के उपचार अथवा इलाज पर आने वाले खर्च का भुगतान सरकार करेगी। हालांकि सरकार इसका भुगतान कब और कैसे करेगी इसका भी विधेयक में कोई जिक्र नहीं है। सरकार का कहना है कि वह कानून बनने से पहले इस विधेयक में यह व्यवस्था कर दी जाएगी। लेकिन डॉक्टरों को इस पर भरोसा नहीं है।

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मुश्किल बात यह है कि राजस्थान में इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। और सरकार ने राइट टू हेल्थ अर्थात स्वास्थ्य का अधिकार अधिनियम पास कर आम आदमी का समर्थन हासिल करने का प्रयास किया है। अब डॉक्टरों के पुरजोर विरोध के बावजूद सरकार इस विधेयक को वापस नहीं ले पा रही है। क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो विरोधी भारतीय जनता पार्टी इस विषय को चुनावी मुद्दा बना सकती है। बहरहाल यह विधेयक राजस्थान सरकार के गले में कुछ ऐसा अटका हुआ है कि उससे इसे न तो उगलते बन रहा है और न ही निगलते।

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