बिलासपुर

मुस्लिम समाज की महिला को, मोबाइल और व्हाट्सएप के जरिए दिया गया तलाक मान्य नहीं

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(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि किसी भी मुस्लिम समुदाय की महिला को मोबाइल और व्हाट्सएप के जरिए दिया गया तलाक मान्य नहीं किया जा सकता। इसके लिए दस्तावेज और कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। इस आदेश के साथ ही कोर्ट ने दहेज प्रताड़ना के आरोपी पति की याचिका खारिज कर दी है। पति ने कहा था कि वह अपनी पत्नी को पहले तलाक दे चुका है। इसलिए उस पर दहेज उत्पीड़न और गबन का केस नहीं बनता है। रायगढ़ जिले के खरसिया की रहने वाली जरी नाज अंसारी की शादी 2016-17 में मध्य प्रदेश के अनूपपुर के कोतमा निवासी मोहम्मद अख्तर मंसूरी से हुई थी। महिला का आरोप है कि ससुराल जाने के बाद कुछ दिनों तक मेहमानों की मौजूदगी तक पति का व्यवहार ठीक रहा। लेकिन मेहमानों के जाने के बाद उसे बदसूरत बताकर शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना देना शुरू कर दिया दहेज में हुंडई कार की बजाय स्विफ्ट कार देने की बात कहने लगे। इस दौरान 2 जुलाई 2017 को उसे जबरन मायके में छोड़ दिया गया। इसके बाद उसके पति ने व्हाट्सएप मेसेज से 3 बार तलाक लिखकर अपनी पत्नी को छोड़ दिया। पति और ससुराल वालों की हरकतों से तंग आकर महिला ने थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी। उनकी रिपोर्ट और पुलिस ने पति मोहब्बत अख्तर के साथ उसके परिवार वालों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और गबन का अपराध दर्ज कर लिया। मोहम्मद अख्तर ने इस f.i.r. को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसमें बताया गया कि क्योंकि वह अपनी पत्नी को तलाक दे चुका है। लिहाजा उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना और गबन का मामला दर्ज नहीं हो सकता।कोर्ट में उसके पति ने मुस्लिम अधिनियम का हवाला देते हुए तर्क दिया कि उसके खिलाफ दहेज प्रताड़ना और गबन का मामला दर्ज नहीं हो सकता। इस मामले में सभी पक्षों की सुनवाई के बाद जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने माना है कि मोबाइल मैसेज और व्हाट्सएप में दिए गए तलाक को वैध नहीं माना जा सकता। इसके लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। इस टिप्पणी के साथ ही कोर्ट ने मोहम्मद अख्तर की याचिका को खारिज कर दिया है।

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