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जमात-ए-इस्लामी और सोरोस से कनेक्शन,US में क्यों और किससे मिले राहुल गांधी-स्मृति ईरानी

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(शशि कोन्हेर) : पीएम नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से ठीक पहले राहुल गांधी वॉशिंगटन में थे और कई लोगों से इस दौरान मुलाकात की थी। अब भाजपा ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आखिर राहुल गांधी वहां क्या करने गए थे। एक तस्वीर शेयर करते हुए केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी ने सवाल उठाया कि राहुल गांधी जिन लोगों से मिले, वे जॉर्ज सोरोस के लोग हैं। उन्होंने कहा कि जॉर्ज सोरोस वही शख्स है, जो देश के खिलाफ काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को बताना चाहिए कि उन्होंने गीता विश्वनाथ से क्या बात की थी।

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यही नहीं उन्होंने कहा कि राहुल गांधी की मीटिंग जमात-ए-इस्लामी से भी है। जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा तंजीम अंसारी भी राहुल गांधी से मिला था। स्मृति इरानी ने कहा कि राहुल गांधी को इस मामले में जवाब देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जमात-ए-इस्लामी से जुड़े लोगों ने ही अमेरिका में कार्यक्रम कराए थे, जिनमें राहुल गांधी मौजूद रहे। उन्होंने पूछा कि आखिर जॉर्ज सोरेस से जुड़े लोगों से राहुल गांधी ने मुलाकात क्यों की थी। इससे पहले भी राहुल गांधी की विदेश यात्राओं पर भाजपा की ओर से सवाल उठाए जाते रहे हैं।

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बता दें कि जॉर्ज सोरोस ने कुछ महीनों पहले एक बयान दिया था कि वह कथित राष्ट्रवादियों से लड़ने के लिए 100 करोड़ डॉलर का फंड देने को तैयार हैं। कहा जाता है कि जॉर्ज सोरोस ने 1984 में रूस के खिलाफ अभियान को भी फंडिंग की थी। यही नहीं 1986 में चीन के लिए फंड जारी किया था। जॉर्ज सोरोस के बयान को लेकर भी तब भाजपा ने तीखा हमला बोला था। स्मृति इरानी ने सवाल दागा, ‘कांग्रेस ने अब तक इसका जवाब नहीं दिया है कि क्या यह सच है कि राहुल गांधी ने अमेरिका में सुनीत विश्वनाथ से मुलाकात की थी।’

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उन्होंने कहा कि भारत के हर शख्स को यह सच्चाई मालूम है कि उसने कहा था कि वह भारत में कथित राष्ट्रवादियों से लड़ने के लिए 100 डॉलर खर्च करेंगे। इसके बाद भी राहुल गांधी उनसे गलबहियां कर रहे हैं। स्मृति इरानी ने कहा कि जॉर्ज सोरोस से राहुल गांधी का यह इकलौता कनेक्शन नहीं है।

कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान ओपन सोसायटी फाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट भी राहुल गांधी के साथ मिले थे। इस संस्था की फंडिंग भी जॉर्ज सोरोस ही करते हैं। बता दें कि अमेरिकी कारोबारी जॉर्ज सोरोस कई बार कह चुके हैं कि वह भारत समेत दुनिया के बड़े देशों में लोकतंत्र की स्थापना के लिए 100 डॉलर तक का फंड देने को तैयार हैं।

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