बिलासपुर

हवाई सेवा आंदोलन और भाजपा का उदासीन रवैया

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(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – एक तरफ तो बीते कुछ दिनों से प्रदेश के पूर्व मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता अमर अग्रवाल बिलासपुर शहर के आधे अधूरी परियोजनाओं और निर्माण कार्यों के खिलाफ लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं उनकी अपनी भारतीय जनता पार्टी, पता नहीं क्यों… हवाई सेवा के लिए चल रहे संघर्ष और 3 दिन पूर्व हुए बिलासपुर बंद को लेकर उदासीन बनी रही। कांग्रेस के शहर और ग्रामीण जिला इकाइयों ने बिलासपुर बंद के 1 दिन पहले बाकायदा बैठक लेकर हवाई सुविधाओं के लिए बिलासपुर बंद के आह्वान को अपना पूर्ण समर्थन दिया और पार्टी जनों से इसमें शामिल होने की अपील की। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के संगठन ने ऐसा कुछ करने से परहेज किया। शायद उसके बड़े पदाधिकारी हवाई सेवा आंदोलन को कांग्रेस का आंदोलन मानकर चल रहे हैं। और इसीलिए बिलासपुर बंद के आयोजन से पार्टी के बड़े नेताओं ने सम्मानजनक बनाए रखी। सभी जानते हैं कि बिलासपुर में हवाई सुविधा की मांग बहुत पुरानी है। बिलासपुर के कमजोर और हुंकरहा बबा जैसे (दिल्ली भोपाल और अब रायपुर के आगे हर बात में हांथ उठाकर “हां” कहने वाले) जनप्रतिनिधियों के अदूरदर्शी नजरिए के कारण बिलासपुर को उस नियमित हवाई सेवा के लिए भी आंदोलन करना पड़ रहा है। जो रायपुर को आज से तकरीबन 46 साल पहले 1977-78 में सहज ही हासिल हो गई थी। अगर बिलासपुर को भी उसी दौरान यह सुविधाएं मिल जाती तो आज इस शहर की सूरत और सीरत कुछ और रहती। हमें यह कहने में भी कोई “लाज” नहीं है कि अगर बिलासपुर में उसी दौरान हवाई सुविधा शुरू हो जाती तो शायद छत्तीसगढ़ की राजधानी बनने का इसका दावा भी, कुछ अधिक ही मजबूत हो जाता।

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बहरहाल हवाई सेवा संघर्ष समिति और हाईकोर्ट में हवाई सेवा को लेकर याचिका लगाने वाले कमल दुबे जैसे पत्रकार के चलते बिलासपुर को हवाई सुविधा नसीब हुई। लेकिन बाद में इसके साथ जिस तरह का खिलवाड़ किया जाने लगा। उसे रोकने और सुविधाओं के विस्तार के लिए हवाई सेवा संघर्ष समिति द्वारा शुक्रवार को किया गया बिलासपुर बंद सर्वथा उचित व जरूरी था। शायद इसीलिए बिलासपुर शहर के तमाम व्यापारी छात्र और सामाजिक संगठनों ने इसे स्वस्फूर्त समर्थन देकर बिलासपुर बंद के आयोजन को शत प्रतिशत सफल बनाया। इस आंदोलन में व्यक्तिगत रूप से, भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता और कार्यकर्ता जरूर जुड़े रहे। लेकिन जैसा कि हम पहले कह चुके हैं। भाजपा संगठन के बड़े पदाधिकारियों ने इस बंद से सम्मानजनक दूरी बनाए रखी ।

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वैसे यह कोई पहला मौका नहीं था जब बिलासपुर में भाजपा ने किसी आंदोलन को लेकर ऐसी उदासीनता दिखाई हो। इसके पहले भी बिलासपुर में केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए चले आंदोलन के दौरान भी भाजपा का यही रवैया, इस शहर के शुभचिंतकों को तकलीफ देता रहा। केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिए चले उस आंदोलन में भी व्यक्तिगत रूप से भाजपाई जरुर शामिल होते रहे लेकिन पार्टी संगठन का रवैया तब भी बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा। आज भारतीय जनता पार्टी के कुछ लोग व्यंगात्मक रूप से जरूर यह कह रहे हैं कि बिलासपुर में हवाई सेवा से अधिक सिटी बस सेवा जरूरी है। जिसके बंद होने के लिए (उनके मुताबिक) प्रदेश सरकार ही जिम्मेदार है।

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लेकिन ऐसा कहने की बजाय, अगर भारतीय जनता पार्टी सिटी बस सेवा शुरू करने के लिए कोई तगड़ा आंदोलन और बिलासपुर बंद जैसा कदम उठाती। तब शहर के लोग उसकी सराहना ही करते। लेकिन। अफसोस कि भाजपा ने विपक्षी दल होने के नाते इस मामले में भी ज्ञापन और विज्ञप्ति जारी करने से अधिक कुछ नहीं किया। वहीं बिलासपुर बंद को लेकर उदासीन रवैये का प्रदर्शन कर इस पार्टी ने जनहित की मांगों से जुड़े आंदोलन में खुलकर शामिल होने का एक और मौका गंवा दिया है। वह भी ऐसे महत्वपूर्ण समय में, जब 6-7 माह बाद ही, पूरे प्रदेश के साथ-साथ बिलासपुर में भी विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं।

यह भी ध्रुव सत्य है कि.. जब तक बिलासपुर के हित की मांगों के लिए.. बिलासपुर के हक की लड़ाई के लिए यहां रहने वाले लोग दलगत और व्यक्तिगत मतभेदों से ऊपर उठकर जुड़ेंगे नहीं तब तक बिलासपुर का भगवान भी भला नहीं कर सकता।

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