देश

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने में संवैधानिक उल्लंघन पाया गया तो देंगे दखल: सुप्रीम कोर्ट

Advertisement

(शशि कोन्हेर) : जम्मू-कश्मीर मामले पर सुनवाई के 7वें दिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि क्या आप अनुच्छेद-370 खत्म करने की केंद्र की मंशा का आकलन करने को न्यायिक समीक्षा चाहते हैं? अदालत ने कहा कि न्यायिक समीक्षा के दौरान यदि उसमें कोई उल्लंघन पाया गया तो ‌यह अदालत हस्तक्षेप भी करेगी। संविधान पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि क्या आप हमसे अनुच्छेद-370 निरस्त करने के सरकार के निर्णय के अंतर्निहित विवेक की न्यायिक समीक्षा करने को कह रहे?

Advertisement

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्यकांत की संविधान पीठ ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर 7वें दिन की बहस के दौरान यह सवाल किया। इसका जवाब देते हुए याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि ‘मैं संविधान के साथ की गई धोखाधड़ी की बात कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि इस मामले में सत्ता का संसदीय प्रयोग पूरी तरह से सत्ता के रंग में रंगा हुआ था।

Advertisement

दवे ने पीठ से कहा कि ऐसा महज इसलिए किया गया क्योंकि जम्मू-कश्मीर की विधानसभा भंग कर दी गई थी और इस प्रकार संसद के पास शक्ति थी और राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद-356 के तहत शक्ति थी। वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने बहस को आगे बढ़ाते हुए कहा कि आप इतिहास, विशेषकर संवैधानिक इतिहास दोबारा नहीं लिख सकते। उन्होंने कहा कि सरकार के पास अनुच्छेद-370(3) के तहत अनुच्छेद-370 को हटाने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने की कवायद संविधान के साथ पूर्ण धोखाधड़ी है।

भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में अनुच्छेद-370 हटाने का वादा किया था : दवे
वरिष्ठ अधिवक्ता दवे ने संविधान पीठ से कहा कि केंद्र की सत्ता में बैठी भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाने का वादा किया था।’ दवे ने कहा कि शीर्ष कोर्ट ने फैसला दिया था कि राजनीतिक दलों के ये घोषणापत्र संवैधानिक योजना और भावना के खिलाफ नहीं हो सकते। दवे ने शीर्ष न्यायालय में कहा कि ‘राष्ट्रपति कोई रबर स्टांप नहीं है..

बहुमत बोलता नहीं.. वह कोई घटक शक्ति नहीं है।’ उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से जम्मू कश्मीर में विकास व अन्य बातें करना कोई मायने नहीं रखता। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-370 हटाना ओर राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना पूरी तरह से राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है।

अनुच्छेद-370 खत्म किया जाना कानूनी शक्ति का दुरुपयोग : वरिष्ठ अधिवक्ता
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 खत्म किए जाने को कानूनी शक्ति का दुरुपयोग बताया। दवे ने संविधान पीठ के समक्ष बेरुबारी संघ वाद मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद-370 इसी का प्रतिबिंब है। दवे ने पीठ से कहा कि ‘मुझे पिछले कई दिनों तक अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई।

बस इसका उल्लेख करना उचित समझा, वह मेरी सहायता कर रहे हैं।’ बेरूबारी संघ वाद मामले में शीर्ष न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का भाग मानते हुए कहा था कि संसद को इसमें संशोधन का अधिकार नहीं है।

Advertisement

दवे ने पीठ से कहा कि आप (देश) एक राज्य के लोगों को अपने में शामिल होने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन जिन शर्तों के साथ वे (जम्मू कश्मीर/लोग) शामिल होते हैं, फिर उसका उल्लंघन होता है। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि वहां के महाराजा कुछ शर्तें चाहते थे। इसके जवाब में दवे ने कहा कि हां, यह ऐतिहासिक संदर्भ है लेकिन महाराजा ने कुछ शर्तें भी रखीं और इसमें अनुच्छेद-370 का प्रावधान किया गया और इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। दवे ने कहा कि राष्ट्रपति अकेले ही संविधान सभा के प्रस्ताव पर कार्रवाई कर सकते हैं।

Advertisement

संवैधानिक आदेशों को 1957 के बाद लागू क्यों किया गया : मुख्य न्यायाधीश
वरिष्ठ अधिवक्ता दवे ने कहा कि यह अनुच्छेद अपना जीवन जी चुका है और अपना उद्देश्य प्राप्त कर चुका है। अनुच्छेद-370(1) इसलिए बचा हुआ है क्योंकि यदि बाद में संविधान में संशोधन होता है और नए अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर में भी लागू किए जाते हैं तो उस खंड का उपयोग किया जा सकता है। जहां तक अनुच्छेद 370(3) का संबंध है, राष्ट्रपति कार्यकारी अधिकारी बन गये।

इस पर मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘यदि संविधान सभा के समाप्त होने के बाद अनुच्छेद-370 ने अपना उद्देश्य पूरा कर लिया है तो संवैधानिक आदेशों को 1957 के बाद लागू क्यों किया गया? लेकिन यह तथ्य कि अनुच्छेद-370 ने अपना उद्देश्य पूरा किया, उसके बाद लागू किए गए संवैधानिक आदेशों से झुठलाया गया है। इसलिए अनुच्छेद-370 अस्तित्व में बना रहा।

मुख्य न्यायाधीश ने दवे से कहा कि यदि आपका कथन खंड 3 के संबंध में सही है तो 1957 में संविधान सभा द्वारा अपना कार्य पूरा करने के बाद कोई भी संवैधानिक संशोधन नहीं हो सकता है। इसे संवैधानिक प्रथा में ही झुठलाया गया है, संवैधानिक संशोधन हुए और 2019 तक होते रहे। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ‘यदि आप यह कह रहे हैं कि 370(1) का अस्तित्व बना हुआ है तो फिर आप यह नहीं कह सकते कि अनुच्छेद 370(3) का अस्तित्व समाप्त हो गया है। या तो सब कुछ एक साथ रहता है या सब कुछ एक साथ नष्ट हो जाता है।’

वरिष्ठ अधिवक्ता दवे ने इस पर कहा कि यह केवल संवैधानिक संशोधन द्वारा ही किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि एक कहानी यह कही जाती है कि अनुच्छेद-370 के कारण जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा नहीं है, यह कहानी पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यहां तक कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी इस कहानी को खारिज किया था। संविधान सभा की बहस से ही पता चलता है कि अनुच्छेद-370 जारी रहना था। दवे ने पीठ से कहा कि अनुच्छेद 370(3) का उपयोग करके अनुच्छेद-370 को निरस्त नहीं किया जा सकता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button