सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाया अधिवक्ता पर जुर्माना….?
(शशि कोन्हेर) : नई दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाई कोर्टो में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया एक सुस्थापित प्रक्रिया के माध्यम से होती है, जिसमें हाई कोर्ट का कोलेजियम जजों की वरिष्ठता, योग्यता और सरकार द्वारा उनके बारे में प्राप्त सभी सूचनाओं पर विचार करता है।
शीर्ष कोर्ट ने एक जज की पदोन्नति रोकने की कोशिश करने और अदालती कार्यवाही का दुरुपयोग करने पर अधिवक्ता बी. शैलेश सक्सेना पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ के समक्ष शैलेष सक्सेना ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ए. वेंकटेश्वर रेड्डी को तेलंगाना हाई कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के प्रस्ताव पर प्रस्तुत अपने विरोध-पत्र पर विचार करने और आदेश जारी करने की मांग की थी।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यीय कोलेजियम ने 17 अगस्त को हुई बैठक में रेड्डी सहित छह न्यायिक अधिकारियों को तेलंगाना हाई कोर्ट के जजों के रूप में पदोन्नत करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। शैलेश सक्सेना ने अपनी याचिका में केंद्र, तेलंगाना और तेलंगाना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार (सतर्कता और प्रशासन) को अपने विरोध-पत्र पर विचार करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ए. वेंकटेश्वर रेड्डी के खिलाफ कई आरोप लगाए हैं और कहा कि जज के रूप में उनकी पदोन्नति नहीं की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ता की बेशर्मी देखकर आश्चर्यचकित हैं, क्योंकि अब वह मौजूदा याचिका को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर कर रहे हैं।’
पीठ ने कहा, ‘हमारा विचार है कि लागत की उचित वसूली ही एकमात्र समाधान प्रतीत होता है। हम इस प्रकार रिट याचिका को खारिज करते हुए चार सप्ताह के भीतर सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स आन रिकार्ड वेलफेयर फंड में पांच लाख रुपये जमा करने का निर्देश देते हैं। हम यह भी उचित समझते हैं कि बार काउंसिल आफ तेलंगाना याचिकाकर्ता की एक सदस्य के रूप में आचरण की जांच करे और उस उद्देश्य के लिए आदेश की एक प्रति तेलंगाना बार काउंसिल को भेजी जाए।
उप्र उच्च न्यायिक सेवा नियमों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज : सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा नियमों को चुनौती देने वाली गैर-सरकार संगठन ‘संविधान बचाओ ट्रस्ट’ की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी है कि वह नहीं चाहता कि ‘व्यस्त संगठन’ एनजीओ इसके प्रविधानों को चुनौती दें। इन नियमों में सभी वर्गो के उम्मीदवारों के लिए समान न्यूनतम योग्यता तय की गई है। एनजीओ की विशेष अनुमति याचिका में कहा गया था कि इससे आरक्षण का उद्देश्य ही निरर्थक हो जाता है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करने से इन्कार करते हुए कहा कि कोई पीडि़त उम्मीदवार आएगा तो वह उसकी बात सुनेगी।