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व्हाट्सएप ग्रुप का एडमिन ग्रुप मेंबर द्वारा की गई आपत्तिजनक पोस्ट के लिए जिम्मेदार नहीं : केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को एक उल्लेखनीय फैसले में कहा कि यदि व्हाट्सएप ग्रुप का कोई सदस्य ग्रुप में आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करता है तो ग्रुप के एडमिन को परोक्ष रूप से (vicariously) उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

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जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि आपराधिक कानून में परोक्ष दायित्व (Vicarious liabilty) केवल तभी तय किया जा सकता है, जब कोई कानून ऐसा निर्धारित करे।

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“एक परोक्ष आपराधिक दायित्व केवल कानून के प्रावधान के तहत ही तय किया जा सकता है, अन्यथा नहीं। किसी विशेष दंडात्मक कानून के अभाव में, जिसके तहत विशेष दंडात्मक दायित्व पैदा होता हो, व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन को ग्रुप में मेंबर की ओर से किए गए आपत्तिजनक पोस्ट के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।”

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कोर्ट ने कहा कि यह आपराधिक न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत है कि दोषपूर्ण इरादा (mens rea) अपराध का एक घटक होना चाहिए और अपराध का गठन करने के लिए अधिनियम और इरादे दोनों में संगति होनी चाहिए।

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मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने ‘फ्रेंड्स’ नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था। चूंकि उन्होंने निर्माण किया था, इसल‌िए एडमिन भी वही थे। दो और एडमिन थे, जिनमें से एक पहला आरोपी था।

मार्च 2020 में, पहले आरोपी ने एक अश्लील वीडियो पोस्ट किया, जिसमें यौन कृत्यों में शामिल बच्चों को दिखाया गया था।


तदनुसार, पहले आरोपी के खिलाफ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67 बी (ए), (बी) और (डी) और यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण अधिनियम की धारा 13, 14 और 15 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।

बाद में, याचिकाकर्ता को ग्रुप का निर्माता और को-एडमिन होने के कारण दूसरे आरोपी के रूप में रखा गया था। इससे क्षुब्ध होकर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की ओर से वकील अनिल कुमार एम शिवरामन और सी चंद्रशेखरन पेश हुए और मामले में वरिष्ठ लोक अभियोजक एमके पुष्पलता ने प्रतिवादियों का प्रतिनिधित्व किया।


न्यायालय के समक्ष प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या समूह के सदस्य द्वारा पोस्ट की गई आपत्तिजनक सामग्री के लिए व्हाट्सएप ग्रुप का निर्माता या एडमिन आपराधिक रूप से उत्तरदायी हो सकता है।

“व्हाट्सएप ने सूचनाओं के आदान-प्रदान में बहुत तेजी से अपनी प्रासंगिकता साबित की है। इस एप्लिकेशन की अनूठी विशेषताओं में से एक यह है कि यह लोगों को समूह में चैट और कॉल करने में सक्षम बनाता है … जो व्यक्ति व्हाट्सएप ग्रुप बनाता है उसे ग्रुप का एडमिनिस्ट्रेटर (एडमिन) कहा जाता है। … इन एडमिनिस्ट्रेटर्स को कुछ शक्तियां दी गई हैं, जैसे, किसी सदस्य को जोड़ना/निकालना आदि। इन समूहों के मॉडरेशन की कमी के कारण… व्हाट्सएप ग्रुप के सदस्य आपत्तिजनक सामग्री डाल सकते हैं। कानूनी परिणाम और इस तरह के आपत्तिजनक पोस्ट से पैदा प्रशासक के संभावित दायित्व पर विचार किया गया है।”

मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में, विशिष्ट प्रश्न का उत्तर दिया जाना था कि क्या याचिकाकर्ता को पहले आरोपी के कृत्य के लिए परोक्ष रूप से उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

न्यायालय ने कहा कि सिविल और सेवा मामलों में परोक्ष दायित्व आमतौर पर दो लोगों के बीच किसी न किसी कानूनी संबंध के कारण पैदा होता है।

हालांकि, कुछ उदाहरणों पर भरोसा करते हुए, यह पाया गया कि परोक्ष आपराधिक दायित्व केवल कानून के प्रावधान के तहत ही तय किया जा सकता है, अन्यथा नहीं।

इसलिए, चूंकि कोई विशेष दंड कानून परोक्ष दायित्व नहीं तय करत है, इसलिए यह माना गया कि समूह के सदस्य द्वारा आपत्तिजनक पोस्ट के लिए व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

“याचिकाकर्ता पर आईटी एक्ट की धारा 67बी (ए), (बी), और (डी) और पोक्सो अधिनियम की धारा 13, 14 और 15 के तहत आरोप लगाया गया है। इनमें से कोई भी प्रावधान ऐसे दाय‌ित्व के लिए प्रावधान नहीं करता है। कोई कानून नहीं है जिसके जर‌िए किसी भी मैसेजिंग सर्विस के एडमिन को ग्रुप में किसी सदस्य द्वारा किए गए पोस्ट के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

एक व्हाट्सएप एडमि‌निस्ट्रेटर आईटी एक्ट के तहत मध्यस्थ नहीं हो सकता है। वह किसी भी रिकॉर्ड को प्राप्त या प्रसारित नहीं करता है या ऐसे रिकॉर्ड के संबंध में कोई सेवा प्रदान नहीं करता है। व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन और उसके सदस्यों के बीच कोई मास्टर-सर्वेंट या प्रिंसिपल-एजेंट का संबंध नहीं है। ग्रुप में किसी और की प्रकाशित पोस्ट के लिए एडमिन को उत्तरदायी ठहराना आपराधिक कानून के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ जाता है।”

इसके अलावा, यह देखा गया कि जैसा कि बॉम्बे और दिल्ली हाईकोर्टों द्वारा आयोजित किया गया था, अन्य सदस्यों पर एक व्हाट्सएप ग्रुप के एडमिन का एकमात्र विशेषाधिकार यह है कि वह ग्रुप के से किसी भी सदस्य को जोड़ या हटा सकता है। ग्रुप का कोई सदस्य उस पर क्या पोस्ट कर रहा है, इस पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है।

इसी तरह, वह किसी ग्रुप में संदेशों को मॉडरेट या सेंसर नहीं कर सकता है। इस प्रकार, यह निष्कर्ष निकाला गया कि एक व्हाट्सएप ग्रुप के निर्माता या एडमिन, केवल उस क्षमता में कार्य करते हुए, समूह के किसी सदस्य द्वारा पोस्ट की गई किसी भी आपत्तिजनक सामग्री के लिए परोक्ष रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

जज ने इस बात पर भी जोर दिया कि यह बताने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था कि याचिकाकर्ता ने कथित अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित किया था या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित या प्रसारित किया था या उसने उक्त सामग्री को ब्राउज़ या डाउनलोड किया था या, किसी भी तरह से, बच्‍चों के ऑनलाइन दुरुपयोग की सुविधा प्रदान की थी।

चूंकि कथित अपराधों के मूल तत्व याचिकाकर्ता के खिलाफ पूरी तरह से अनुपस्थित हैं, अदालत ने इसे एक उपयुक्त मामला पाया जहां वह सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग कर सकता है।

इस प्रकार, याचिकाकर्ता के खिलाफ लंबित कार्यवाही को रद्द कर दिया गया और याचिका को अनुमति दी गई।

उल्लेखनीय है कि इसी प्रकार विचार मद्रास हाईकोर्ट ने व्यक्त किए हैं।

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