धार्मिक

आज है जितिया व्रत, जानें मुहूर्त, पारण समय, व्रत और पूजा विधि

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(कमल दुबे) : पुत्र प्राप्ति व संतान के दीर्घायु की कामना को लेकर महिलाएं आज जितिया व्रत रखेंगी। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखकर व्रत का अनुष्ठान करती हैं। मान्यता है कि जितिया व्रत रखने से भगवान प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं.

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हिंदू धर्म में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व होता है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत करने का विधान है। ये व्रत महिलाओं के लिए बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस व्रत को महिलाएं निर्जला रहकर करती हैं। इस पर्व को जीवित्पुत्रिका, जिउतपुत्रिका, जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है।

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ये व्रत मुख्य रूप से बिहार, उत्तरप्रदेश, बंगाल, झारखंड में धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन सिद्धि योग बन रहा है जो इस व्रत के महत्व में वृद्धि करेगा.

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जीवित्पुत्रिका व्रत का शुभ मुहूर्त

17 सितंबर को दोपहर 2 :14 मिनट पर अष्टमी तिथि प्रारंभ होगी और 18 सितंबर दोपहर 4 : 32 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
उदया तिथि के अनुसार, जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 को रखा जाएगा।
इसका पारण 19 सितंबर को प्रातः 6: 10 मिनट के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

पूजा सामग्री

जीवित्पुत्रिका व्रत में भगवान जीमूत वाहन, गाय के गोबर से पूजा का विधान है। जीवित्पुत्रिका व्रत में खड़े अक्षत(चावल), पेड़ा, दूर्वा की माला, पान, लौंग, इलायची, पूजा की सुपारी, श्रृंगार का सामान, सिंदूर, पुष्प, गांठ का धागा, कुशा से बनी जीमूत वाहन की मूर्ति, धूप, दीप, मिठाई, फल, बांस के पत्ते, सरसों का तेल, खली, गाय का गोबर जरूरी है।

पूजन विधि
जितिया व्रत के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
इसके बाद व्रत रखने वाली महिलाएं प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजा स्थल की लिपाई करें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में एक छोटा सा तालाब बनाकर पूजा की जाती है।

जितिया में शालीवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की पूजा करें।
जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति को जल या फिर मिट्टी के पात्र में स्थापित करें और पीले और लाल रुई से उन्हें सजाएं।

धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला से उनका पूजन करें।

इसके बाद महिलाएं संतान की दीर्घायु और उनकी प्रगति के लिए पूजा करें।
पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका की व्रत कथा जरूर पढ़ें।

इसके बाद सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित कर व्रत का पारण करें

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