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बूथ का डेटा सार्वजनिक करने का नहीं कोई कानूनी आधार, सुप्रीम कोर्ट से क्यों बोला चुनाव आयोग..

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चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक हलफनामा दायर कर स्पष्ट किया है कि हरेक बूथ पर डाले गए वोटों का डेटा सार्वजनिक करने का कोई कानूनी आधार नहीं है। आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है कि ऐसा करने से मतदाता भ्रमित होंगे।

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इसके साथ ही चुनाव आयोग ने कहा कि फॉर्म 17C (प्रत्येक मतदान केंद्र में डाले गए वोट) के आधार पर मतदाताओं का वोटिंग डेटा का खुलासा मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा करेगा क्योंकि उसमें डाक मत पत्रों की गिनती भी शामिल होगी।

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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, आयोग ने अपने हलफनामे में कहा है, “किसी भी चुनावी मुकाबले में जीत का अंतर बहुत करीब हो सकता है।  ऐसे मामलों में, पब्लिक डोमेन में फॉर्म 17सी का खुलासा करने से मतदाताओं के मन में भ्रम उत्पन्न कर सकता है ।

क्योंकि फॉर्म 17सी के वोटिंग आंकड़ों के बाद जोड़े गए वोटों की संख्या डाकपत्र से प्राप्त वोटों की ओर इशारा करेंगे। इसलिए, इस तरह का अंतर मतदाताओं को आसानी से समझ में नहीं आएगा और चुनाव मशीनरी में अराजकता पैदा करने के लिए इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है।”

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर उस याचिका पर हलफनामा दायर किया है, जिसमें एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) नामक गैर सरकारी संस्था ने मांग की थी कि मौजूदा लोकसभा चुनाव 2024 में वोटिंग खत्म होने के 48 घंटों के अंदर आयोग मतदान केंद्रवार मत प्रतिशत का आंकड़ा अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे।

आयोग ने अपने हलफनामे में उस याचिका का विरोध किया है। पिछले हफ्ते चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की खंडपीठ ने ADR की याचिका पर चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में एडीआर पर भी हमला बोला है और कहा है कि कुछ “निहित स्वार्थ” के कारण एडीआर आयोग के कामकाज को बदनाम करने के लिए उस पर झूठे आरोप लगाता रहता है। एडीआर की तरफ से मामले की पैरवी वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं।

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