बिलासपुर

खामोश…! अब बिलासपुर वालों को ठोंक-पीटकर, फलाहारी बनाने की जद्दोजहद में सड़को पर डटे हैं, सैंकड़ों फल वाले भैया…नगर निगम और ट्रैफिक वाले भी जनहित में कर रहे सहयोग

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(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – इस शीर्षक से आपको गुमराह होने की जरूरत नहीं है। बिलासपुर में अभी भी शायद 1% से कम परिवार ही ऐसे होंगे जिनके रोज के डाइट में फ्रूट या फ्रूट सलाद (अंग्रेजी में सेलेड) शामिल होता हो। बचपन में बुखार आने पर पहले पहल तो साबूदाना की खीर से काम चला लिया जाता था। तब टाइफाइड या टीबी जैसी बीमारियों में ही मरीज को फल खिलाने की प्रथा थी। अभी भी शहर में मात्र 2-4 प्रतिशत ही फ्रीज वाले ऐसे परिवार होंगे, जिनके फ्रीज में फलों के दर्शन हुआ करते हों। वरना छत्तीसगढ़िया घरों में,वहां भी आमतौर पर पताल, धनिया पत्ती, मिर्ची मेथी, मिलावटी दूध और दो चार बोतल पानी के साथ गूंथे हुए आटे का ही कब्जा रहता है। इस सच्चाई के उलट अब एक दूसरा नजारा है..। शहर के चौक चौराहों और बाजारों में लगे फल के हजारों ठेलों और सैकड़ों दुकानों का..बिलासपुर शहर में बरसों से वृहस्पति बाजार, शनिचरी पड़ाव, मुंगेली नाका और बुधवारी समेत दर्जनों जगहों पर बेजा कब्जा कर फलों के सैकड़ों ठेलों और दुकानों के कब्जेदार एक तरह सें सडकों के स्थाई कब्जेदार हो चुके हैं।

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हालत यह है कि बाहर से बिलासपुर आने वाले यात्रियों को चारों ओर सड़क पर अवैध कब्जा जमाए पसरी फल की दुकानों और ठेलों को देखकर यह भ्रम हो सकता है कि क्या बिलासपुर की पूरी आबादी कहीं फलाहारी तो नहीं हो गई है..? मतलब चांटीडीह से लेकर सरकंडा समेत तमाम जगहों पर जितनी बड़ी संख्या मैं फलों के अवैध ठेले और दुकानें लग रही हैं। उसे देखकर पताल की चटनी और हरी मिर्ची के साथ बांसी भात खाने वाले हम सरीखो़ं को भी बाहर से आने वाले लोग फलाहारी समझने लगे हैं। घर पहुंचे 2-4 मेहमानों ने पूछ भी लिया कि बिलासपुर फल खाने का कोई विशेष रिवाज है क्या।। अब उन्हें कौन बताए कि बिलासपुर की जनता को सड़कों के किनारे बेजा कब्जा वाले ठेलो और दुकानों में ही फलों के दर्शन होते हैं घरों में नहीं। एक साथी ने तर्क दिया कि नगर निगम और ट्रैफिक वाले संयुक्त मुहिम चला रहे हैं कि बिलासपुर के लोग अधिक से अधिक मात्रा में फल का सेवन करें और स्वस्थ रहें। शायद इसके ही कारण नगर निगम और ट्रैफिक वालों की ओर से बिलासपुर में जगह-जगह सड़कों पर फलों का प्रेजेंटेशन दिया जा रहा है। जिससे हम सभी के सभी भुक्खड लोग, फल खाने की ओर आकर्षित हो सकें।

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गर्व की बात यह भी है कि हम लोगों को बेजा कब्जा की दुकान या ठेले लगाकर पल खिलाने के लिए सुबह से शाम तक संघर्ष करने वाले बेचारे फल वाले भैया लोग, उत्तर प्रदेश और बिहार से यहां आकर बिलासपुर को फलाहारी बनाने का बीड़ा उठाए हुए हैं। इच्छा तो होती है कि ट्रैफिक पुलिस और नगर निगम के अतिक्रमण विरोधी दस्ते का इसलिए नागरिक अभिनंदन किया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने शहर की सड़कें फलों का प्रेजेंटेशन करने के लिए, फल वालों को सौंप कर लोगों को फल खाने के लिए प्रेरित करने की दिशा में बहुत ही उत्कृष्ट कार्य किया है। पर अफसोस की हम बिलासपुर के नमक हराम लोग ऐसा ना कर नगर निगम और ट्रैफिक विभाग तथा फल वाले भैया लोगों पर गलत ढंग से बेजा कब्जा का आरोप लगाते रहते हैं।

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जबकि वो बिचारे हमारी भलाई के काम में(हमको फल खिलाकर स्वस्थ करने में) ही लगे हुए हैं। एक साथी ने बहुत उत्साहवर्धक बात यह बताई है कि बहुत जल्द हमें आसानी से फल मुहैया कराने के लिए हमारे घरों के दरवाजों पर भी ऐसी फल की दुकाने और ठेले अड़ा दिए जाएंगे, जिससे हमें फलों के लिए अधिक दूर ना जाना पड़े और वह हमारे घर के दरवाजे पर ही उपलब्ध रहें। आखिर हम कब फल नहीं आयेंगे।

जानकारी मिली है कि बिलासपुर शहर को पूरी तरह फलाहारी बनाने के लिए यहां सड़कों और दुकानों में फल बेचने वाले लोगों ने उत्तर प्रदेश और बिहार से अपने तमाम रिश्तेदारों को बिलासपुर बुला लिया है। जिससे वे भी आए और बिलासपुर की हर सड़क पर, हर गली में बेजा कब्जा कर फल की दुकानें और ठेले लगाएं। उन्हें भरोसा है कि ऐसा करने पर एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब पूरा बिलासपुर शतप्रतिशत फलाहारी हो जाएगा और तब फलों के सेवन यहां की जनता का स्वास्थ्य भी टनाटन हो जाएगा। इति..!

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