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किसके अपमान से दुखी होकर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष नरेंद्र गिरी गोस्वामी ने की आत्महत्या..?

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(शशि कोन्हेर) : प्रयागराज। जब तक जिया सम्मान से जिया, सभी को सम्मान दिया। अपमान में जीना नहीं चाहता। आखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और मठ बाघम्बरी गद्दी के महंत तकरीबन 60 वर्षीय नरेंद्र गिरि के जीवन के यह वो अंतिम शब्द हैं जो उन्होंने मौत को गले लगाने से पहले सुसाइड नोट में लिखा। पुलिस को आठ पन्नों का यह सुसाइड नोट उस कक्ष के बेड पर मिला जहां महंत नरेंद्र गिरि का शव पंखे में फंदे से लटका मिला। सुसाइड नोट की सत्यता की भी जांच होनी है कि यह वास्तव में महंत नरेंद्र गिरि ने ही लिखा या नहीं। सच यह है कि पुलिस अधिकारियों ने बताया वही मीडिया में सुसाइड नोट के बारे में लिखा जा रहा है लेकिन अगर तो बताया जा रहा वह सच है तो इससे यह तो साफ है कि महंत बहुत ज्यादा दुखी थे…जो भी हुआ था…।

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आइजी जोन केपी सिंह ने बताया कि अल्लापुर स्थित मठ बाघम्बरी गद्दी में कक्ष का दरवाजा तोड़कर अंदर जाने पर मिले सुसाइड नोट में लिखा है कि उनके यानी महंत के बाद मठ का संचालन कैसे होगा। आइजी ने इस बाबत कहा कि पूरे घटनाक्रम की विवेचना की जाएगी। आइजी ने बताया कि पुलिस को इस घटना की सूचना शाम 5.20 बजे बाघम्बरी मठ से महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य बबलू के द्वारा फोन पर मिली। आइजी के अनुसार बबलू को फौरन ही कहा गया कि किसी को भी वहां कुछ छूने नहीं दिया जाए। पुलिस ने दरवाजा तोड़कर शव को फंदे से उतरवाया। वहीं आठ पन्नों का सुसाइड नोट भी मिला।

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इस नोट में उन्होंने कई शिष्यों के नाम लिखे हैं। एक तरह से उन्होंने सुसाइड नोट में अपने बाद बाघम्बरी मठ की वसीयत भी लिख दी। इसमें कई लोगों के नाम हैं। एक सवाल के जवाब में आइजी केपी सिंह ने बताया कि अपमानित करने वालों में शिष्य आनंद गिरि का भी नाम है। लेकिन यह विवेचना में पता चल पाएगा कि नरेंद्र गिरी गोस्वामी महाराज अपने किस शिष्य से वास्तविक रूप से आहत थे। हालांकि सुसाइड नोट से यह तय है कि नरेंद्र गिरी अपने किसी शिष्य द्वारा हुए अपमान से दुखी थे। नरेंद्र गिरी द्वारा लिखे गए सुसाइड नोट की जांच ही इस पूरे मामले की दिशा तय करेगी। बहरहाल, फॉरेंसिक टीम घटनास्थल कीबारीकी से जांच कर रही है।

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