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हार से टूटा कर्नाटक की जीत का खुमार, कांग्रेस की लोकसभा में भी बढ़ी चुनौतियां…

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लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तीन बड़े हिंदी भाषी राज्यों में हार से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है। इस हार के बाद पार्टी को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने और सहयोगियों को साथ लेकर चलने का भी दबाव बढ़ गया है। हार का आगामी लोकसभा चुनाव पर कितना असर पड़ेगा यह तो वक्त तय करेगा, पर लड़ाई में बने रहने के लिए कांग्रेस को कड़ी मेहनत करनी होगी। क्योंकि, हार से कर्नाटक में जीत का खुमार टूट गया है।

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कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि वह हिंदी भाषी क्षेत्र से लगभग खत्म हो गई है। पार्टी की सिर्फ हिमाचल प्रदेश में सरकार है। वहीं, दक्षिण में कर्नाटक के बाद तेलंगाना में भी पार्टी अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है। तेलंगाना की जीत महत्वपूर्ण है, हालांकि इसका हिंदी भाषी राज्यों पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। ऐसे में पार्टी के लिए हिंदी भाषी राज्यों में खुद को विकल्प के तौर पर बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।

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ओबीसी मतदाताओं का भरोसा जीतना होगा
इन चुनावों में हार से साफ हो गया है कि कांग्रेस के लिए जाति जनगणना की वकालत कर ओबीसी मतदाताओं को भरोसा जीतना मुश्किल है। क्योंकि, छत्तीसगढ़ में करीब 41 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। पार्टी ने जाति जनगणना कराने का भी वादा किया था, पर ओबीसी मतदाताओं का भरोसा जीतने में विफल रही। मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस ने सरकार आने पर जाति जनगणना का वादा किया था, पर मतदाताओं ने भाजपा पर भरोसा बरकरार रखा।

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पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि चुनाव परिणाम की समीक्षा के बाद ही हार के असल कारणों का पता चलेगा। हालांकि, शुरुआती तौर पर ऐसा लगता है कि कांग्रेस का जाति जनगणना का वादा हिंदी भाषी मतदाताओं को पसंद नहीं आया। हमें अपनी चुनाव रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा। वह मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधी टिप्पणी करना भी शायद मतदाताओं को पसंद नहीं आई है।

पार्टी को कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना होगा
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत का आगामी लोकसभा चुनाव पर कोई खास असर नहीं पड़ता है। वर्ष 2018 में इन तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत हुई थी, इसके बावजूद वर्ष 2019 आम चुनाव में भाजपा इन राज्यों की 65 में से 61 सीट पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी। पर कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की जीत के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा था, वह इन चुनावों में हार के बाद पस्त हो गया है।

पार्टी को कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाना होगा। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह कहते हुए कार्यकर्ताओं का हौसला बरकरार रखने की कोशिश की है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। पर हम पूरे दृढ़ संकल्प के साथ इन राज्यों में खुद को पुनर्निमाण और पुनर्जीवित करने का प्रयास करेंगे। इसके साथ हार के कारणों पर चर्चा कर भविष्य की रणनीति तय करने के लिए पार्टी अध्यक्ष जल्द तीनों राज्यों के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुला सकते हैं।

चुनावी रणनीति पर करना होगा पुनर्विचार
कांग्रेस ने जिन चुनाव गारंटियों की बुनियाद पर कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में जीत दर्ज की थी, वह इन चुनाव में कारगर साबित नहीं हुए। इन राज्यों में मतदाताओं को मोदी की गारंटी ज्यादा भरोसेमंद लगी। इसके साथ पार्टी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान इन राज्यों में मिले समर्थन को भी वोट में बदलने में नाकाम रही। ऐसे में पार्टी को नए सिरे से चुनावी रणनीति तैयार करनी होगी।

संगठन को लेकर करना होगा काम
पार्टी को अपने संगठन पर भी खास ध्यान देना होगा। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार में होने के बावजूद पार्टी संगठन को मजबूत बनाने में विफल रही और चुनाव में पार्टी को इसका खामियाजा उठाना पड़ा। मध्य प्रदेश में भी पार्टी ने संगठन पर कोई खास जोर नहीं दिया। जबकि भाजपा ने संगठन को केंद्र में रखते हुए अपनी रणनीति का खाका तैयार किया और मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाने में सफल रही।

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