क्या बिलासपुर को कई सौगातें देने वाले, पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह को, भुला बैठे हैं इस शहर के लोग..?
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर।पहले मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री और बाद में केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री के पद पर रहते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय अर्जुन सिंह जी ने बिलासपुर शहर और यहां जिले की जनता की जनता के कल्याण के लिए जो कार्य किए उनकी याद आज भी सभी के मन में बनी हुई है। श्री अर्जुन सिंह ने छत्तीसगढ़ मैं बिलासपुर को विशेष स्नेह दिया और यहां के अनेक कांग्रेसी नेताओं को उच्च पदों पर बैठने का अवसर भी मुहैया कराया। इसके बावजूद कल 5 अगस्त को उनके जन्मदिन पर बिलासपुर शहर और जिले में उन्हें उस सम्मानजनक ढंग से याद नहीं किया गया जिसके कि वे शत-प्रतिशत हकदार हैं।ऐसा लगता है कि पूरे देश की तरह बिलासपुर जिले की जनता भी जल्दी भूल जाने के रोग से ग्रस्त होकर उस महामानव को भूल गए जिसने बिलासपुर के लिए पता नहीं क्या-क्या किया। सबको याद होगा कि 5 अप्रैल, 2006 को तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने केंद्र सरकार के शिक्षा संस्थानों ने 27% ओबीसी आरक्षण लागू करके लाखों ओबीसी की दुनिया बदल दी। IIT, IIM, AIIMS, DU, BHU, NEET सब जगह का ओबीसी कोटा वहीं से आया। अब तक कई लाख ओबीसी इस तरह से एडमिशन लेकर तमाम जगहों पर पहुँचे है। जहां तक बिलासपुर की बात है बिलासपुर के लिए मध्य प्रदेश के दौर में मुख्यमंत्री रहते हुए और उसके बाद केंद्र में मंत्री रहने के दौरान बिलासपुर के लिए जो किया गया वह हमेशा यादगार रहेगा। उन्होंने ही बिलासपुर में गुरु घासीदास विश्वविद्यालय की स्थापना की। और बाद में केंद्र में मानव संसाधन मंत्री होने के दौरान उन्होंने गुरु घासीदास विश्वविद्यालय को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिलाया। इसके अलावा मुख्यमंत्री के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने रायपुर के आगे बिलासपुर के वजूद की लकीर को, लंबा करने की दिशा में अपनी ओर से हर संभव प्रयास किए। देश के पंजाब से लोगोंवाल समझौता के जरिए आतंकवाद के ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम भी पंजाब में राज्यपाल रखते हुए स्वर्गीय अर्जुन सिंह ने ही किया था। लेकिन कल 5 नवंबर को उनके जन्मदिन पर ऐसा कोई भी आयोजन किसी संस्था संगठन के द्वारा नहीं किया गया जिसे उल्लेखनीय कहा जा सकता है। बिलासपुर शहर और जिले को अनेक सौगात देने वाले राजनेता को यहां के लोग जिस तरह भुला बैठे हैं, उसे कतई उचित नहीं कहा जा सकता।