छत्तीसगढ़

सन्तानो की लम्बी उम्र के लिए माताओं ने किया निर्जला जिवित पुत्रिका व्रत

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(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर- (सरगुजा) जन्म जन्मांतर से मां का दर्जा ऊंचा रहा है और ऊंचा रहेगा। औलाद  सुख के खातिर मां  हर तरह की कष्ट सहन करतीं हैं। सभी दुःख दर्द भूलकर अपने सुख खुशी संतान के लिए न्योछावर कर देती है । मां दया ममता की अथाह सागर  होती है।  औलाद सुख के लिए मां क्या कुछ दर्द सहन नहीं कर सकती वह जननी है। मां की ममता अदभुत  अकल्पनीय है। औलाद सुख के खातिर माताये क्या-क्या दुख उठाती रहती हैं शायद जीवित्पुत्रिका व्रत इसका ज्वलंत उदाहरण है।

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प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा को कायम  रखते हुए संतानों के लम्बी उम्र के लिए  माताओं ने  निर्जला उपवास रख जिवित पुत्रिका व्रत किया। यह व्रत अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को किया जाता है। नगर लखनपुर सहित आसपास ग्रामीण अंचलों में जिवित पुत्रिका त्योहार 18 सितमबर रविवार को  पूरे आस्था  उमंग के साथ मनाया गया। तथा दूसरे रोज सोमवार को वर्ती महिलाओं ने पारण किये।

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पौराणिक मान्यता अनुसार द्वापर युग में ऋषि धौम्य के बताये मुताबिक महारानी द्रौपदी ने जिवित पुत्रिका व्रत  संतानों के लम्बी उम्र की कामना को लेकर किया था तब से यह प्रथा चली आ रही है। कथाओं में यह भी वर्णित है कि इस व्रत को किसी चिल एवं सियारनी ने भी किया था। और उनके पूर्व जन्म के बुरे कर्मों के साथ उनके संतानों के जीवन मृत्यु के किस्से जुड़े  होने का दास्ता भी मिलता है।

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वर्ती महिला 36  घंटे का उपवास रख        प्रथानुसार राजा जिमुतवाहन  चिल्ही सियारनी की कथा सुनती है  तथा सोने चांदी एवं रेशमी धागे से बनीं जिउतिया धारण करती है। दूसरे दिन पारण के साथ व्रत तोड़ती हैं। माताओं द्वारा अपने संतानों के लम्बी उम्र तथा सुख समृद्धि खुशहाली के लिए यह व्रत साल में एक बार किया जाता है। गांवों में इस मौके पर करमा नृत्य किये जाने की चलन काफी पुरानी रही है ।

जिसे जिऊतिया करमा कहा जाता है। ग्रामीण अंचलों में जिउतिया करमा नृत्य उत्साही महिला पुरुषों द्वारा किया गया। पकवान खाने खिलाने के साथ पीने पिलाने का दौर भी आदीवासी बाहुल इलाकों में हफ्तों तक चलता है लिहाजा सिलसिला जारी है। बहरहाल यह त्योहार पूरे उल्लास के साथ मनाया गया।

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