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अंग्रेजी बोलने वाले और ज्यादा फीस लेने वाले वकीलों के पक्ष में क्यों नहीं है..? कानून मंत्री रिजीजू… जानिए..!

(शशि कोन्हेर) : केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू  ने शनिवार को कहा कि लोअर और हाईकोर्ट की कार्यवाही में क्षेत्रीय  और लोकल भाषाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जबकि सुप्रीम कोर्ट में बहस और फैसले अंग्रेजी में हो सकते हैं. मंत्री ने ये भी बताया कि सोमवार से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र के दौरान करीब 70 निरर्थक कानून भी निरस्त कर दिए जाएंगे.

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मंत्री ने कहा कि किसी भी मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं आंका जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि वह इस विचार से सहमत नहीं हैं कि एक वकील को अधिक सम्मान, केस या फीस सिर्फ इसलिए मिलनी चाहिए क्योंकि वह अंग्रेजी में ज्यादा बोल लेते हैं. उन्होंने ये भी कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच अच्छा समन्वय होना चाहिए, ताकि न्याय तेजी से मिल सके.

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न्याय के दरवाजे समान रूप से खुले होने चाहिए

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रिजिजू जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के 18वीं अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक का उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि कोई भी अदालत केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों के लिए नहीं होनी चाहिए. न्याय के दरवाजे सभी के लिए समान रूप से खुले होने चाहिए. रिजिजू ने अदालती कार्यवाही में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओं पर भी चर्चा की. मंत्री ने हिंदी में अपना संबोधन दिया और कहा- सुप्रीम कोर्ट में तर्क और निर्णय अंग्रेजी में होते हैं. लेकिन हमारा मानना है कि हाईकोर्ट और निचली अदालतों में क्षेत्रीय और स्थानीय भाषाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

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मातृभाषा बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए

उन्होंने कहा कि ऐसे वकील हैं जो प्रभावी रूप से अंग्रेजी में बहस नहीं कर सकते हैं. इसलिए जब कार्यवाही में एक आम बोलने वाली भाषा का उपयोग किया जाता है तो यह कई समस्याओं का समाधान कर सकता है. उन्होंने आगे कहा कि अगर मुझे अंग्रेजी में बोलने में समस्या है तो मुझे अपनी मातृभाषा बोलने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. मैं इस पक्ष में नहीं हूं कि जो लोग अंग्रेजी में अधिक बोलते हैं उन्हें अधिक सम्मान, अधिक केस या अधिक फीस मिलनी चाहिए. मैं इसके खिलाफ हूं.

लंबित केसों पर जताई चिंता

उन्होंने कहा कि हम अपनी मातृभाषा के साथ पैदा हुए हैं और इसके साथ ही बड़े हुए हैं. हमें अपनी मातृभाषा को अंग्रेजी से कमतर नहीं समझना चाहिए. मंत्री ने अदालतों में लंबित केसों की संख्या बढ़ने पर भी चिंता जताई और कहा कि लंबित केसों की संख्या करीब पांच करोड़ होने वाली है. उन्होंने कहा कि दो साल में दो करोड़ केस निपटाने का लक्ष्य होना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच अच्छा समन्वय होना चाहिए ताकि लोगों को न्याय दिलाने के उद्देश्य को हासिल करने में देरी न हो.

निरर्थक कानून जनता पर बोझ

उन्होंने कहा कि मैं जहां भी जाता हूं, पहला सवाल यह उठता है कि लंबित केसों की संख्या में कमी लाने के लिए सरकार क्या कदम उठा रही है. यह एक चुनौती है और इस पर चर्चा करने के लिए यह बैठक एक अच्छा अवसर है. उन्होंने कहा कि जो साधन संपन्न और अमीर हैं, वे ज्यादा फीस लेने वाले वकीलों को नियुक्त करते हैं जो एक सुनवाई के लिए 10-15 लाख रुपये लेते हैं, लेकिन आम आदमी इतने पैसे खर्च नहीं कर सकता. मंत्री ने कहा कि आम आदमी को अदालत से दूर रखने वाला कोई भी कारण हो, वह हमारे लिए चिंता का विषय है. निरर्थक कानूनों पर उन्होंने कहा कि आम लोगों के जीवन पर बोझ के रूप में काम करने वाले ऐसे किसी भी कानून को हटाया जाना चाहिए.

अनावश्यक कानून से जनता होती है प्रताड़ित

उन्होंने कहा कि अब तक लगभग 1,486 निरर्थक कानूनों को कानून की किताब से हटा दिया गया है. इसके अलावा, 1,824 और ऐसे कानून चिह्नित किए गए हैं. उन्होंने कहा- मैं संसद की कानून की किताब से करीब 71 विभिन्न अधिनियमों और विनियोग अधिनियमों को हटाने के लिए प्रतिबद्ध हूं. उन्होंने कहा कि अधिकारी लोगों पर अनावश्यक कानूनी प्रावधान लगाते हैं जिससे आम आदमी पीड़ित होता है.

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