छत्तीसगढ़

नागा साधु जिनके श्राप से श्रापित हुआ ये गांव….

(मुन्ना पाण्डेय) : सरगुजा/लखनपुर – आदि काल से भारत भूमि ऋषि मुनि संत पीर फकीरों की तपोस्थली रही है। इन ऋषि मुनि महात्माओं के हैरतअंगेज अजीबोगरीब किस्से कहानियां आज भी कहे सुने जाते हैं वेद पुराण धार्मिक किताबो में इन साधुओं के चरित्र के दास्तां मिलते हैं।किसी को श्राप दिये जाने किसी पर असीम कृपा करके वरदान देने जैसी किंवदंतियां प्रचलित है।

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ऐसा ही एक वाकिया सरगुजा जिले के लखनपुर गांव (वर्तमान नगर पंचायत) रियासत काल में एक अजीबो गरीब घटना घटित हुई थी लोकोक्तियों से पता चलता है कि उस काल के लखनपुर गांव के स्थित ठाकुर बाड़ी (राममंदिर) आश्रम में कहीं से आकर एक नागा साधु ठहरे थे उनके चेहरे में अद्भुत तेज था। साल दर साल उसी ठाकुर बाड़ी आश्रम में रहने लगे आस्थावान लोगों का आत्मिक लगाव भी नागा साधु के प्रति

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बढ़ने लगा ।अक्सर ठाकुर बाड़ी हरिदर्शन करने वाले भक्त नागा साधु के भी दर्शन कर जातें थे। कुछ जानकार बताते हैं लखनपुर गांव सहित आसपास गांवों में जमींदारों का हुकुमत था उस वक्त के तत्कालीन जमीनदार कौन थे नागा साधु किस ईस्वी सन में लखनपुर राममंदिर ठाकुर बाड़ी में आकर ठहरे थे इसका कोई लिखित ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता लेकिन कुछ उम्रदराज पुराने लोगों से पता चलता है कि बाबा को तत्कालीन जमींदारों द्वारा ठाकुर बाड़ी में ठहरने की मजूरी प्राप्त थी ।

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बताते है नागा बाबा ने सवारी के लिए एक घोड़ा पाल रखा था।आत्म सुरक्षा के लिए सदैव दोनाली बंदूक अपने साथ रखते थे। अपने चाहने वालों पर बाबा की असीम कृपा बनी रहती थी। दैनिक रोजमर्रा के जीवन में बाबा ठाकुर बाड़ी राममंदिर आश्रम में धुनी रमाए ईश्वर भक्ति में लीन रहते हुए अपने दर्शन के लिये पधारे भक्तों से वार्तालाप कुछ धार्मिक चर्चा करना ही उनकी दिनचर्या थी। नागा साधु कब उठते स्नान पूजा अर्चना करते कोई नहीं जानता। बच्चे महिला पुरुष सब उनके अनन्य भक्त हुआ करते थे।

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स्वभाव से सादा जीवन ऊंचा विचार रखने वाले नागा बाबा सदैव निर्वस्त्र रहते थे।हलके वस्त्र का उपयोग किया करते थे निजि अंग के अलावा सारा शरीर निर्वस्त्र ही होता था उस जमाने में वैसे भी कपड़े का अभाव था। नागा साधु अपने भक्तों से बेहद खुश सदैव प्रेम भाव रखते थे। दर्शनार्थियों का आना जाना लगा रहता था बताते हैं नागा साधु वात्सल्य से परिपूर्ण सदैव अपने भक्तों से मधुर संबंध रखते थे। स्वाभाविक रूप से पुरूष भक्त ही उनके समीप रहे होंगे। यदाकदा महिला श्रद्धालु भी दूर से नागा बाबा के दर्शन कर लिया करतीं रहीं होगी ।

ठाकुर बाड़ी आश्रम के अलावा घोड़े में सवार कहीं एकान्त स्थान में टहलने चले जाते थे कुछ लोगों को ही मालूम था। इस तरह का दिन चर्या था नागा बाबा के कोई लिखित इतिहास तो नहीं मिलता कब किस ईस्वी सन में नागा साधु आये थे उस काल के तत्कालीन जागीरदार या जमीदार कौन थे बताया नहीं जा सकता परन्तु दंतकथाओं से पता चलता है कि लखनपुर जमींदारी काल में ही बाबा का पदार्पण हुआ था।

नागा बाबा का समाधि (मठ) आज भी झिनपुरीपारा के समीप बहने वाली चुल्हट नदी के सतीघाट के ऊपर विद्यमान है। खुद अपने बीते वक्त की दास्तां बयां कर रही है। कुछ जानकार बताते हैं नागा साधु ने इसी स्थान पर अपने आप को अपने ही हाथों गोली मारकर आत्महत्या कर लिया था । जमींदारों ने उसी स्थान पर उनके पार्थिव शरीर के लिए समाधि बनवा दिया था। अपने आपबीती के साथ आज भी विद्यमान है। बताते हैं उस पुराने काल में समय ने भयानक करवट ली – लखनपुर गांव के कुछ परिवारों के महिलाओं ने नागा साधु के उपर चरित्र हीनता का आरोप लगा दिया था जिसे बाबा बर्दाश्त नहीं कर सकें और अपने आप को गोली मारकर आत्महत्या कर लिया था।

यदि पिछले कहानी की ओर नजर डालें तो पता चलता है एक रोज़ दोपहर में जब बाबा अपने घोड़े का लगाम थामे उखड़े हुए दुःखी मिजाज़ के साथ पदयात्रा करते राजमहल के सामने से कुछ बड़बड़ाते हुए गुजर रहे थे। जिसे जमींदारों के सिपाहियों ने सुना था ऐसा जानकर बताते हैं नागा साधु कह रहे थे – इस गांव में बसने वाले लोगों की एवं इस गांव की कभी उन्नति विकास नहीं हो सकती सदैव दरिद्र दुःखी ही रहेंगे। बल्कि दूसरे नगर कस्बे बाहर से आकर बसने वाले लोगो की उन्नति होगी । वह बड़बड़ाते हुए श्राप देते जा रहे थे और महल प्रांगण से गुजर गये थे कंधे पर दो नाली बंदूक भी रखे हुए थे।

सिपाहियों ने ये राज तब खोला जब नागा साधु दुनिया में नहीं रहे अपने देह का त्याग कर चुके थे।उनका पार्थिव शरीर घने पलाश पेड़ों से आच्छादित सुनसान विरान से स्थान पर मिली थी। आज वहां से पुरानी पगडंडी रास्ता गुजरती है जो लखनपुर के राजमहल से दक्षिण दिशा की ओर जाती है।

वक्त ने ऐसा भयानक करवट लिया कि एक जरा सी अफवाह ने नागा साधु की जान ले ली। इस तरह स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे नागा बाबा। फिर शुरू हुआ उसके श्राप का प्रकोप बताते हैं कुछ लोग ही नहीं अपितु सारा गांव दुर्भिक्ष हो गया । जो दूसरे प्रांत या नगर से आये थे वे सब मालामाल धन धान्य से परिपूर्ण हो रहे थे बाबा समाधि ले चुके थे परन्तु गांव के पुराने बाशिंदों पर बाबा के श्राप का बज्रपात होने लगा।

खासकर उनके उपर बीजली गिरी जिन्होंने बाबा के साधुत्व पर चरित्रहीन होने का मोहर लगा दिया था अस्पष्ट रूप से उन परिवारों के चर्चा भी दबे जुबान होने लगी थीं जिन्होंने यह कहते हुए लांछन लगाया था कि– नागा बाबा महिलाओं पर बुरी नजर रखते हैं। शायद यही वह लफ्ज़ था, जिसके वजह से सारा गांव श्रापित हुआ, उस जमाने में नागा बाबा खुद एक चमत्कार से कम नहीं थे बताते हैं उनके उपर लगाये गये झूठे आरोप का खामियाजा उस परिवारों को भूगतान पड़ा जिन कुनबे के लोगों ने बाबा के उपर चरित्रहिनता का घृणित आरोप लगाया था।

लेकिन कहते हैं गेहूं के साथ घुन भी पिसता है ठीक उसी तरह बाबा के श्राप का असर गांव के लोगों में कई पीढ़ी तक बना रहा गरीबी और तंगहाली में गांववासी अपने जीवन बसर करते रहे।समय की धारा प्रवाह निरंतर होती रही।

उस काल के लोग रहे न रहे वो चश्मदीद गवाह रहे, जो नागा बाबा के बारे में जानने वाले तथा उनके उपर बदनुमा दाग लगाने वाले कोई नहीं रह गया अगर कुछ रह गया तो सदियों से खुले आसमान के नीचे अपने सीने में ढेर सारी राज छुपाये नागा बाबा का समाधि (मठ) और उनके कहानी रह गये। आज भी मौजूद हैं वह जगह जहां बाबा ने दम तोड़ा था। जहां उनकी पार्थिव शरीर दफन है। कालांतर में लखनपुर गांव पंचायत बना ब्लाक बना नगर पंचायत का शक्ल अख्तियार किया।

मौजूदा वक्त में नागा बाबा के बददुआ का असर लखनपुरवासियों पर है या नही कोई नहीं जानता। अपितु बाबा का पूजा अर्चना नागपंचमी, शारदीय एवं चैत्र नवरात्र दिपावली, होली, आदि त्योहार पर्व के अवसर पर नगर वासियों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा आम जनजीवन पशुपक्षियों में बीमारी महामारी सूखा अकाल पड़ने जैसी प्राकृतिक आपदा आने पर ग्राम बैगा एवं बाबा भक्त समाधि स्थल में पूजा अर्चना क्षमा याचना करने आते हैं। ताकि आने वाली विपत्तिया टल जाये।

आस्थावान बाबा भक्त अपनी कामना पूर्ति के लिए भी यदाकदा मन्नतें मानने मठ में आते हैं। शायद बाबा के प्रति यही सच्ची श्रद्धा है।

कालांतर में बाबा के श्राप का अंत हुआ या नहीं इस बात का एहसास नये आधुनिक पीढ़ी को नहीं है लेकिन कुछ पुराने लोगों को लगता है लखनपुर गांव पंचायत बना फिर नगर बना आज विकास पथ पर अग्रसर है कहीं न कहीं नागा बाबा के श्राप का असर खत्म हुआ होगा ऐसा लगता है।

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