कका जईसन मुख्यमंत्री..तभो ले साढे चार साल खाली रहिगे छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष पद..अऊ.. “बिन दाई ददा के लईका” कस हो गे..राजभाषा आयोग के हाल..!
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ठीक उसी तरह छत्तीसगढ़ की पहचान बनते जा रहे हैं। जिस तरह लालू यादव बिहार और ममता बनर्जी बंगाल की पहचान के पर्याय माने जाते हैं। गेंडी से लेकर गिल्ली डंडा और भंवरा, चाक पर दिया बनाने, ढोलक मांदर बजाने और होली के फाग गीत गाने में जैसा महारथ श्री भूपेश बघेल को हासिल है.. वैसा शायद ही छत्तीसगढ़ के किसी नेता को होगा। लेकिन अफसोस कि छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी अस्मिता के प्रतीक कहे जाने वाले श्री भूपेश बघेल के मुख्यमंत्रित्व काल में ही छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग को घोर उपेक्षा झेलनी पड़ रही है।
छत्तीसगढ़ी को सरकारी कामकाज समेत हर जगह मान सम्मान दिलाने के लिए बने राजभाषा आयोग के अध्यक्ष का पद खाली होने से इस आयोग की हालत उस कार की तरह हो गई है… जिसे बिना ड्राइवर के ही चलाया जा रहा हो। यह बात समझ से परे है कि छत्तीसगढ़ी के प्रति समर्पित कहे जाने वाले “कका” के कार्यकाल में राजभाषा आयोग “बिना डऊका” के “मेहरारू” (पत्नी)जैसा हो गया है । 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होते ही इसके अध्यक्ष प्रसिद्ध इतिहासकार और छत्तीसगढ़ तथा छत्तीसगढ़ी भाषा के मूर्धन्य जानकार डॉ विनय पाठक ने आयोग के अध्यक्ष पद से परंपरानुसार इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद से लेकर आज तक (साढे चार सालों से) आयोग का अध्यक्ष का पद खाली पड़ा हुआ है।
इसके सचिव के रूप में श्री अनिल कुमार भटपहरी अपनी क्षमता के अनुरूप इस आयोग का काम चलाने में सक्रिय रहा करते हैं। लेकिन बहुत सी चीजें अध्यक्ष की नियुक्ति के बिना उनकी क्षमता और सीमा के बाहर हैं। बीच में सन 2021 के आसपास छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों के कहने पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ चरणदास महंत ने भी मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर छत्तीसगढ़ी राजभाषा अध्यक्ष के पद पर नियुक्ति करने का आग्रह किया था। लेकिन इस बात को भी अब 2 साल बीत चुके हैं। इस समय सन 2023 का मार्च महीना चल रहा है। अब प्रदेश विधानसभा के नए चुनाव को अधिकतम मात्र 7-8 अथवा 9 माह ही शेष रह गए हैं। ऐसे में मात्र 2-4 माह के लिए छत्तीसगढ़ी राजभाषा के अध्यक्ष पद पर किसी की नियुक्ति, न तो व्यवहारिक है..और न ही सम्मानजनक। क्योंकि अब अध्यक्ष नियुक्त किए गए व्यक्ति को दो चार महीने बाद चुनाव आचार संहिता लागू होते ही पद से इस्तीफा देना पड़ेगा।
इस बात में कोई दो मत नहीं है कि छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा और छत्तीसगढ़ी संस्कृति तथा छत्तीसगढ़ी पारंपरिक खेलों के लिए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल का समर्पण, जिद की हद से भी आगे माना जाता है। इसके बावजूद ऐसा क्या हुआ जो 2018 के बाद सन 2023 तक किसी को भी इस पद पर नियुक्त नहीं किया जा सका..? जिसके कारण साढे चार साल से पूर्णकालिक अध्यक्ष की अनुपस्थिति में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग की हालत बिन दाई ददा के लईका जैसी होकर रह गई है।