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आपदा ने दिखाया राहत का रास्ता, 24 घंटे के अंदर हावड़ा रेलवे स्टेशन बना अस्पताल

(शशि कोन्हेर) : ओडिशा के बालासोर में दर्दनाक रेल हादसे ने सभी को स्तब्ध कर दिया है। मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है, घायलों की संख्या 1000 पार चल रही है। अस्पताल मरीजों से पट चुके हैं, स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा सकती हैं। लेकिन इस बीच पश्चिम बंगाल का हावड़ा रेलवे स्टेशन इस आपदा में कई लोगों के लिए बड़ी राहत बन गया है। कहने को स्टेशन है, लेकिन इस समय एक अस्पताल के रूप में काम कर रहा है।

कैसे बना स्टेशन अस्पताल?
इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एक रेलवे स्टेशन पर इस समय एक ऑर्थोपेडिक कैंप तैयार हो चुका है, कई डॉक्टरों की फौज इलाज करने के लिए मौजूद है। 10 से 15 एंबुलेंस मौके पर खड़ी हुई हैं और अपने सामान लेने के बजाय लोग दवाई लाते-जाते दिख रहे हैं। यानी कि अस्पताल की जो तस्वीर होती है, वैसा कुछ हाल हावड़ा रेलवे स्टेशन पर देखने को मिल रहा है। दो ट्रेनों की मदद से हादसे वाली जगह से कुल 643 यात्रियों को हावड़ा स्टेशन लाया गया है।

हावड़ा नॉर्थ के डीसीपी अनुपम सिंह ने कहा कि हमने हर मेडिकल सुविधा का इंतजाम कर रखा है। असल में यशवंतपुर हावड़ा एक्सप्रेस की 21 बोरियों में से तीन हादसे का शिकार हुई थीं, ऐसे में बाकी बोगियां सुरक्षित हावड़ा आ गईं। ट्रेन में मौजूद यात्रियों को हर मेडिकल सुविधा दी गई। ये भी जानकारी दी गई कि जो यात्री हादसे से बच हावड़ा आए थे, उन्हें मामूली चोटें थीं, किसी को कट था तो कोई पानी मांग रहा था।

लोगों की आपबीती उनकी जुबानी

अब हावड़ा पर भी जो यात्री पहुंचे, वो मान रहे हैं कि उन्हें दूसरी जिंदगी मिली है। ऐसी जिंदगी जो किस्मत वालों को मिलती है। कई लोगों ने उस भयावह हादसे को याद करते हुए अपनी आपबीती बताई है। मोती शेख नाम का एक मजदूर यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन से यात्रा कर रहा था। हादसे के बाद वो और उसका दोस्त हाथों से ही खिड़की को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। उस कोशिश की वजह से हाथ और पैर पर चोट आई। लेकिन अब मोती सिर्फ अपनी दो साल की बच्ची को गले लगाना चाहता है।

इसी तरह 36 साल की डोला भी ऐसे ही अनुभव से बाहर निकली हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपना सारा पैसा, सामान, मोबाइल सब खो दिया है। उनके छोटे बच्चों से कई घंटों से कुछ खाया नहीं है। स्थानीय लोगों की समय रहते मिली मदद की वजह से उन्हें अब जीवनदान मिला है।

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