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छत्तीसगढ़

25 फीट ऊंची श्रीराम की प्रतिमा का अनावरण करेंगे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल-पाण्डेय

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(राम प्रसाद गुप्ता) : एमसीबी। मनेद्रगढ़ चिरमिरी भरतपुर जिले का भरतपुर विकासखंड अपनी सांस्कृतिक विविधताओं और पुरातात्विक अवशेषों से भरा हुआ है। इस कारण यहां की जनता इस भू भाग को राम वन गमन पथ कहती है। एमसीबी जिला मुख्यालय से लगभग 150 किलोमीटर दूर कठौतिया केल्हारी जनकपुर होकर पहुंचा जाता है सीतामढ़ी हरचौका। यह रामचंद्र जी का दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) में प्रथम पड़ाव था।

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 इतिहासकार डॉ विनोद पाण्डेय बताते हैं कि रामचंद्र जी को राजा दशरथ द्वारा वनवास का आदेश मिलते ही वह अयोध्या से प्रस्थान कर गये। अयोध्यावासी तमसा नदी के तट तक उनके साथ-साथ गए तथा वहीं उन्हें विदाई दी। वहां से तमसा नदी पार कर वाल्मीकि ऋषि आश्रम, निषाद राज से भेंट करते हुए चित्रकूट (मध्य प्रदेश) प्रयागराज होते हुए एमसीबी अविभाजित कोरिया जिले के मवई नदी के तट के किनारे होते हुए दंडकारणय में प्रवेश किया। इसके बाद दक्षिण कौशल (छत्तीसगढ़) में मवई नदी के तट को पार कर भरतपुर विकासखंड के सीतामढ़ी हरचौका पहुंचे। यह छत्तीसगढ़ के वनवास काल का पहला पड़ाव था।  

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सीतामढ़ी हरचौका की प्राकृतिक गुफाओं को काटकर 17 कक्ष बनाए गए थे। इनमें द्वादश शिवलिंग अलग-अलग कक्ष में बनाए गए हैं। यही माता सीता भगवान शिव की पूजा अर्चना करती थी तथा प्रभु राम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ कुछ समय यहाँ बिताया। हरचौका अर्थात हरि का चौका तथा सीतामढ़ी अर्थात सीता की रसोई के नाम से यह स्थान सीतामढ़ी हरचौका के नाम से जाना जाता है। इसके बाद घाघरा कोटाडोल और छतोड़ा आश्रम होते हुए बैकुंठपुर, सूरजपुर, विश्रामपुर होते हुए अंबिकापुर पहुंचे। उन्होंने वनवास काल का समय बिताया और आगे की यात्रा की।

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             श्री पाण्डेय ने आगे बताया की राम वन गमन पथ का अधिकांश हिस्सा छत्तीसगढ़ से गुजर रहा है। इसमें अविभाजित कोरिया वर्तमान एमसीबी जिले के सीतामढ़ी हरचौका से लेकर रामाराम (सुकमा) तक का हिस्सा शामिल है। छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ की कुल लंबाई 528 किलोमीटर है।

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