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भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा…निर्माण के पहले ही दिखने लगी दरारें..भारत जोड़ो यात्रा के समापन और खम्मम रैली के आयोजन का “न्यौता” बना अपशगुन..!

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(शशि कोन्हेर) : देश में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर तैयार हो रहा विपक्षी मोर्चा… बनने के पहले ही बिखरता नजर आ रहा है। अगर यही हाल रहा तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ केवल एक संयुक्त विपक्षी उम्मीदवार के सोच को जमीन पर उतारना मुश्किल हो जाएगा। अभी 2 माह पहले तक सतही रूप से भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एकजुट होते दिख रहे विपक्ष में अब अलगाव, दरार और फूट दिखाई देने लगी है। 30 जनवरी को श्रीनगर में समाप्त होने वाली कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह और 18 जनवरी की विशाल तेलंगाना (खम्मम) रैली के निमंत्रण की खींचतान से जो संकेत दिखाई दे रहे हैं। उन्हें भाजपा के लिए राहत भरा और विपक्षी एकता के लिए अपशगुन ही माना जा सकता है। कांग्रेस ने राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर 30 जनवरी को कश्मीर में भव्य आयोजन की जो योजना बनाई है, उसमें जहां देश के 21 राजनीतिक दलों को निमंत्रण दिया है।

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वहीं सात राजनीतिक दलों को कोई न्यौता नहीं दिया है। दूसरी ओर कांग्रेस के आयोजन से पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर के द्वारा 18 जनवरी को अपने राज्य के खम्मम में विशाल रैली के आयोजन की तैयारी की जा रही है। इस आयोजन में देशभर के अधिकांश विपक्षी दलों के नेताओं को निमंत्रण दिया गया है। लेकिन कांग्रेस और नीतीश कुमार समेत कुछ नेताओं को इस रैली का निमंत्रण नहीं भेजा गया है। कांग्रेस ने श्रीनगर की समापन रैली में 21 दलों को न्योता तो दिया है…लेकिन जिन सात दलों को कोई नहीं भेजा है..उनमें पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस, आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के केसीआर की पार्टी बीआरएस, असम में ए आई डी यू एस के मौलाना बदरुद्दीन अजमल, असदुद्दीन ओवैसी, बीजू जनता दल, शिरोमणि अकाली दल गुलाम नबी आजाद की पार्टी और आंध्र प्रदेश की रेड्डी कांग्रेस को निमंत्रण नहीं भेजा गया है। कांग्रेस की समापन रैली के लिए अखिलेश यादव, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा सुप्रीमो मायावती को भी निमंत्रण दिया गया है। लेकिन ये तीनों ही नेता भारत जोड़ो यात्रा के समापन मौके पर श्रीनगर पहुंचेंगे अथवा नहीं इसमें भी शक है। इन सियासी नजारों से साफ है कि 18 और 30 जनवरी को देश में हो रहा दो, “बड़ा विपक्षी जुड़ाव” ही विपक्षी एकता में फूट का कारण बन गया है। इन दोनों विपक्षी रैलियों में न्यौता देने और नहीं देने का खेल भाजपा के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने की अवधारणा को खासा सियासी नुकसान पहुंचाता दिख रहा है। अब इस नुकसान की भरपाई कैसे हो पाएगी..? इसका जवाब, विपक्ष के किसी भी नेता के पास आज शायद ही होगा..?

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