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पड़ोसी देश में हुआ बहुत बड़ा उलटफेर.. जानिए…नेपाल में पैर जमा रहे चीन को कैसे लगा जबरदस्त झटका..?

(शशि कोन्हेर) : नई दिल्ली। नेपाल में चीन को जबरदस्त झटका लगा है। उसके द्वारा किए जा रहे जबरदस्त विरोध और धमकी चमकी के बाद भी नेपाल की संसद में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर कि उस एमसीसी परियोजना पर स्वीकृति की मुहर लगा दी है। किसी ने अपनी नाक की लड़ाई बना रखी थी। अमेरिका ने इस परियोजना को हर हाल में 28 फरवरी तक संसद से पास कराने का अल्टीमेटम दिया था। किस अल्टीमेटम के एक दिन पहले ही सत्ताधारी गठबंधन में नाटकीय ढंग से आए परिवर्तन के बाद इस परियोजना को संसद से मंजूरी मिल गई। दरअसल प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में रहे गठबंधन के दो प्रमुख घटक दल माओवादी और एकीकृत समाजवादी पार्टी शुरू से ही इस बात पर अड़े थे कि यह समझौता एनसीसी नेपाल के हित में नहीं है यह राष्ट्रवादी समझौता है और इसको स्वीकार नहीं करना चाहिए। इन दोनों दलों के विरोध के पीछे चीन का दबाव काम कर रहा था पूरा खुलेआम नेपाल को अमेरिका के साथ एमसीसी समझौता स्वीकार नहीं करने के लिए नेपाली राजनीतिक दलों पर दबाव डाला था। चीन अमेरिका एनसीसी के जरिए नेपाल में अपनी उपस्थिति बढ़ाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है। इसे लेकर चीन की सरकारी मीडिया के जरिए लगातार आपत्ति जताई जाने लगी। चाइनीस कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग के प्रमुख हर दूसरे दिन नेपाल के सत्ताधारी नेताओं को और वर्चुअल मीटिंग के जरिए एनसीसी को स्वीकृत करने के लिए कहते रहे विदेश विभाग के और लगभग रोज ही और करते रहे। यही वजह थी कि अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के प्रधानमंत्री देउबा सहित सत्तारूढ़ दल के नेता प्रचण्ड और माधव नेपाल को फोन कर, 28 फरवरी तक हर हाल में एमसीसी को संसद से पारित करने के लिए दबाब डाला. इतना ही नहीं अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री लू ने नेपाल सरकार और नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर संसद से एमसीसी पास नहीं होता है, तो इसे सीधे-सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा और उसके बाद नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिका पुनर्विचार करने पर मजबूर हो जाएगा. अमेरिकी चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री ने इसे गंभीरता से लिया और सत्तारूढ गठबंधन तोड़कर भी, एमसीसी पास करने का प्रयास करने लगे.

अमेरिका के मंत्री की चेतावनी के 24 घंटे बाद ही, अमेरिका के विदेश मंत्री ने एक भारतीय मीडिया को इंटरव्यू देते हुए नेपाल की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और अमेरिका सहित सभी मित्र देशों और आर्थिक मदद करने वाली संस्थाओं जैसे वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक, यूएन की तमाम डोनर संस्थाओं की तरफ से, हर साल दिए जाने वाली आर्थिक मदद पर इसका सीधा असर पड़ने तक की बात कह डाली.

अमेरिका के इन बयानों के बाद बौखलाए चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के जरिए, अमेरिका का विरोध करना शुरू कर दिया था. पिछले दिनों 24 घंटे में दो बार चीन की तरफ से नेपाल को अमेरिकी सहयोग को लेकर सतर्क रहने को कहा गया. इतना ही नहीं, अमेरिका की चेतावनी पर चीन ने तंज कसते हुए कहा कि यह कैसी आर्थिक मदद है जो डरा धमका कर दी जा रही है. अमेरिका की इस धमकीपूर्ण कूटनीति का हम विरोध करते हैं. नेपाल एक स्वतंत्र और सार्वभौमिक देश है, इसलिए इस तरह का डर धमकीपूर्ण भाषा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

जवाब में अमेरिका ने भी कहा कि नेपाल अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और जिस देश से चाहे वो आर्थिक मदद ले सकता है. इसमें किसी को नेपाल पर दबाव डालने की जरूरत नहीं है। नेपाल अपना निर्णय के लिए स्वतंत्र है और वह जिस देश से चाहे मदद ले सकता है इसमें किसी तीसरे देश को बोलने की या सलाह देने की जरूरत नहीं है। अगले ही दिन चीन ने अमेरिका को पलट कर कहा कि यह आर्थिक मदद है या पंडोरा बॉक्स जो जबरदस्ती नेपाल के गले में बांधा जा रहा है। अमेरिका और चीन के बीच कूटनीति की तमाम मर्यादाओं को लाते हुए निम्न स्तर की भाषा के प्रयोग के बीच आखिरकार चीन को झुकना ही पड़ा। सिर्फ झुकना ही नहीं बल्कि उसे शर्मिंदगी का सामना भी करना पड़ा। जब सत्ता में बैठे उसके विश्वासपात्र तीन महत्वपूर्ण नेताओं ने चीन का भरोसा तोड़ कर अमेरिका का पक्ष लेने का फैसला कर लिया। नेपाल में चीन को या बहुत बड़ा झटका है और धमकी ही सही अमेरिका चीन को उसके ही पड़ोस में अटकर्नी देने में कामयाब हो गया। अब बौखलाया चीन नेपाल के खिलाफ क्या कदम उठाए गए इसको लेकर नेपाल की कम्युनिस्ट नेताओं में अलग ही चिंता है। नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री और वरिष्ठ माओवादी नेता नारायण काजी श्रेष्ठ ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि चीन के खिलाफ जाकर अमेरिका को सपोर्ट करने से नेपाल की हालत यूक्रेन जैसी ना हो जाए। जिस तरह से अमेरिका के उकसावे पर यूक्रेन को रूस के आक्रमण का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह के हालात नेपाल में नहीं होंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। जहां तक भारत का सवाल है पड़ोस के नेपाल में हुआ यह पूरा घटनाक्रम भारत के दूरगामी हित में माना जा रहा है। जाहिर है कि चीन लंबे समय से नेपाल में भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने के लिए अपनी ओर से हरसंभव कोशिश कर रहा था। उसे इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिल रही थी। लेकिन अब नेपाल से मिले इस झटके के बाद अगर चीन कोई भी कदम उठाता है तो नेपाल की राष्ट्रवादी जनता उसके खिलाफ उठ खड़ी होंगी।

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